देश रोज़ाना: संत तिरुवल्लुवर तमिल कवि थे। उनकी नीति परक रचनाएं तमिल भाषा में बहुत पाई जाती हैं। इनके बारे में यह स्पष्ट नहीं है कि वे शैव, वैष्णव या शाक्त थे। कुछ लोगों का मत है कि वे जैन धर्म से संबंधित थे। इसके बारे में तर्क दिया जाता है कि तिरुवल्लुवर की पुस्तक तिरुक्कुरल का पहला अध्याय जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को समर्पित है। इसके आलावा तिरुक्कुरल की शिक्षाएं जैन धर्म की शिक्षाओं से मेल खाती है। ऐसा हो सकता है कि वे जैन धर्म से प्रभावित रहे हों या फिर जैन धर्म को मानने वाले रहे हों। इस बारे में तो इतिहास के पुरोधा बता सकते हैं।
बहरहाल, एक बार की बात है। एक सेठ उनके पास आया और बहुत ही उदास मन से बोला, क्या बताएं गुरुदेव! मैंने पाई-पाई जोड़कर ढेर सारा धन इकट्ठा किया था। अब मेरा बेटा कुसंगति में पड़कर उसे उड़ा रहा है। मैं तो इस बात से चिंतित हूं कि मेरी भावी पीढ़ी का क्या होगा। यदि मेरा पुत्र इसी प्रकार उड़ाता रहा, तो सब कुछ खत्म हो जाएगा। संत तिरुवल्लुवर ने कहा कि तुम यह बताओ कि तुम्हारे पिता तुम्हारे लिए कितनी संपत्ति छोड़ गए थे। सेठ ने तत्काल जवाब दिया-मेरे पिता काफी गरीब थे। वे मुझे अध्ययन करने और संस्कारी होने की शिक्षा हमेशा दिया करते थे। मैंने हमेशा उनकी सीख को अपने ध्यान में रखा।
जीवन भर मेहनत और ईमानदारी से व्यवसाय किया। किसी से बेईमानी नहीं की। लेकिन मेरा बेटा ऐसा निकल गया। संत ने कहा कि यदि तुम भी अपने पिता की तरह अपने बेटे को संस्कारी बनाने का प्रयास करते, तो शायद ऐसी स्थिति नहीं आती। तुमने अपना सारा समय धन कमाने में बिताया। बेटे की ओर ध्यान ही नहीं दिया। यही वजह है कि बेटा कुसंगति में पड़ गया। अब इसका परिणाम तो भोगना ही पड़ेगा।
- अशोक मिश्र