दुनिया में जब भी कोई नई टेक्नोलॉजी आती है, तो ज्यादातर लोग उसका इस्तेमाल करने से हिचकते हैं। कुछ दिनों बाद जब उन्हें टेक्नोलॉजी उपयोगी लगने लगती है, तो उसे हाथों हाथ लिया जाता है। अब कंप्यूटर को ही लें। शुरुआत में इसका जबरदस्त विरोध किया गया। यह बहुत सारे लोगों को बेरोजगार कर देगा। बात सच भी थी। दस आदमियों की जगह एक आपरेटर और कंप्यूटर लगाकर नौ लोगों का वेतन उद्योगपतियों ने बचा लिया। लेकिन लगभग हर आफिस में कंप्यूटर प्रवेश कर चुका है। लोगों ने इसे सहजता से स्वीकार कर लिया है। लेकिन आज सबसे बड़ी समस्या है कंप्यूटरों की आयु पूरी हो जाने के बाद उनके निस्तारण की। करोड़ों कंप्यूटरों का निस्तारण कोई छोटी-मोटी समस्या नहीं है।
ठीक ऐसा ही हुआ, कार्बन उत्सर्जन को कम करने वाले सोलर पैनल के मामले में। शुरुआत में पूरी दुनिया में इसका स्वागत बड़ी बेरुखी से हुआ, लेकिन आज हालात यह है कि पूरी दुनिया मे खपत होने वाली कुल सौर ऊर्जा के उत्पादन में 22 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
अब तक पूरी दुनिया में एक टेरावॉट के सौलर पैनल लगाए जा चुके हैं। जब सोलर पैनल का उत्पादन बड़े पैमाने पर शुरू हुआ था, तब सोचा गया था कि कार्बन उत्सर्जन को काफी हद तक कम करके क्लाइमेट चेंज को स्थिर रखने में सफलता हासिल कर ली जाएगी। यही वजह है कि दुनिया भर में सरकारों ने इसकी खरीद पर कई तरह की छूट प्रदान की।
भारत में आधा या तिहाई कीमत उपभोक्ता से वसूली गई और बाकी केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर अदा किया। नतीजा यह हुआ कि धीरे-धीरे सोलर पैनल का उपयोग बढ़ता गया। भारत में पिछले आठ वर्षों में स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में 19.3 गुना वृद्धि हुई है। यह 56.6 गीगावॉट है। इसके अलावा भारत ने वर्ष 2022 के अंत तक 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसे वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। केंद्र सरकार का पांच सौ गीगावॉट अक्षय ऊर्जा हासिल करने का लक्ष्य तो सराहनीय है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब ये सोलर पैनल अपनी आयु पूरी कर लेंगे, तब क्या होगा? इनके निस्तारण की क्या व्यवस्था होगी, इस पर अभी उतनी गंभीरता से विचार नहीं किया गया है। भारत ही नहीं, यह समस्या तो पूरी दुनिया के सामने मुंह बाए खड़ी है। इस महीने के अंत तक फ्रांस में सोलर पैनल को रिसाइकिल करने वाली दुनिया की पहली फैक्ट्री आरओएसआई (रोसी) काम करन शुरू कर देगी। यह फैक्ट्री सोलर पैनल में लगे कांच और एल्यूमीनियम के साथ-साथ चांदी और तांबे को अलग करेगी। लेकिन यह फैक्ट्री पूरी दुनिया में पैदा होने वाले सौलर पैनल के कितने कचरे को रिसाइकिल करेगी। यदि यही हालात रहे तो आशंका है कि वर्ष 2050 तक पूरी दुनिया में दो करोड़ टन कचरा इकट्ठा हो जाए। इन दिनों पूरी दुनिया में 50 करोड़ टन प्लास्टिक कचर पैदा हो रहा है जिसका निस्तारण पहले से ही एक समस्या है।
संजय मग्गू