किसी ने नहीं सोचा था कि मध्य प्रदेश, राजथान और छत्तीसगढ़ के चुनाव भाजपा के लिए आनंददायी टी पार्टी साबित होगी। खासकर छत्तीसगढ़ में। मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह यह मान लिए थे कि इस बार शिवराज की विदाई तय है। लेकिन कांग्रेस के ये दोनों नेता जनता के मूड और उनकी सोच को नहीं समझ सके। यही हाल छत्तीसगढ़ में भूपेश का था। उन्हें यकीन था कि गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का उनका स्लोगन, गोबर खरीदी, गोमूत्र खरीदी, किसानों की धान खरीदी योजना, किसानों का कर्जा माफ और आदिवासी को लुभाने वाली नीति उनके खाते में जाएगी।
इसीलिए भूपेश और प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलेजा कहती थीं इस बार 75 के पार। यह तो नहीं हो सका। मगर हाथ से सत्ता चली गयी। छत्तीसगढ़ में भूपेश की गृहलक्ष्मी योजना देर से प्रचारित हुई, जबकि भाजपा महतारी योजना फार्म छपवाकर जनता से भरवाने लगी। मध्यप्रदेश के लाड़ली बहना योजना जैसा ही यह था और यह योजना सियासी गेम चेज करने का सबसे बड़ा कारक बना।
भूपेश सरकार को लेकर मीडिया और हाईकमान आश्वस्त थे कि सत्ता नहीं जाएगी। लेकिन भूपेश सरकार के भ्रष्टाचार और उसके अहंकारी नौ मंत्रियों से गुस्साए प्रदेशवासियों ने कांग्रेस को किनारे कर दिया। राजस्थान ने अपना सियासी रिवाज कायम रखा। तेलंगाना कांग्रेस को सात्वना पुरस्कार के रूप में मिला। छत्तीसगढ़ में चुनावी नतीजे के सर्वे यही बता रहे थे कि वहां भूपेश सरकार फिर से लौट रही है। लेकिन भूपेश सरकार का जाना यह बताता है कि ईडी का छापा गलत नहीं था।
महादेव ऐप झूठा नहीं था। कोयला घोटाला सही था। हर जिले में कलेक्टर मुख्यमंत्री के बतौर एजेंट काम कर रहे थे। उनके राजनीतिक मीडिया प्रभारी हो या फिर मीडिया प्रमुख दोनों ने पत्रकारों के दो खेमे बना दिये। पत्रकारों को मुख्यमंत्री से दूर रखा। इससे सीएम को सही जानकारी नहीं मिल सकी।
मध्यप्रदेश में सन 2018 में कांग्रेस की सरकर बनने के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ज्योतिरादत्यि सिंधिया को नाराज न किये होते तो न सरकार जाती और न ही कांग्रेस की इतनी बुरी गत होती। इसलिए भी कि कांग्रेस में ज्योतिरादित्य से बड़ा लोकप्रिय कोई युवा नेता नहीं है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह साढ़े तीन साल तक केवल बयानबाजी करते रहे। जिला स्तर पर कांग्रेस को रिचार्ज करने का काम नहीं किया।
संगठनात्मक ढांचा तैयार नहीं किया। चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह ने कहा था कि जिन 60 सीटों पर कभी कांग्रेस चुनाव नहीं जीती उन्हें जिताने की जवाबदारी मेरी है। हैरानी वाली बात है कि ऐसी सीटों को जिताने के लिए कुछ किया नहीं। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की लहर है यही कहते रहे। बाहर इसका शोर था। लेकिन अंदर लाड़ली बहन का करेंट तेज है, कांग्रेस के बड़े नेता नहीं भाप सके।
दरअसल लाड़ली बहना योजना का अंडर करेंट इतना भयावह निकला कि पंजा चारों खाने चित हो गया। कांग्रेस के घोषणा पत्र में उसी बात का जिक्र था, जिसे शिवराज चुनाव से पहले की पूरा कर दिये थे। कमलनाथ का सर्वे भाजपा को 85 सीट से ज्यादा नहीं दे रहा था। स्थिति ठीक उल्टी हो गयी कांग्रेस की। प्रदेश में कमलनाथ का सियासी प्रचार तंत्र कमजोर रहा। कई संभाग में बड़े नेता एक बार भी नहीं गये। संघ ने पूरे प्रदेश में एक लाख से अधिक बैठकें की चुनाव से पहले। उसने जनता की नब्ज को परखा। कई उम्मीदवारों को टिकट संघ के कहने पर मिला।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास जनाधार वाले नेताओं की कमी है। दिग्विजय सिंह को रिटायर हो जाना चाहिए। वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश को अब नए सिरे से कांग्रेस को खड़ा करना चाहिए। राहुल को भी समझना चाहिए कि केवल भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस उदय नहीं होगा। यदि ऐसा ही लोकसभा में रहा तो सियासी जगत में कांग्रेस इतिहास बनकर रह जाएगी। क्योंकि 2014 के बाद से कांग्रेस की राज्यों से पकड़ कमजोर होती जा रही है। 2004 में 14 राज्यों में कांग्रेस काबिज थी। 2009 में 11 राज्य, 2014 में उसकी सत्ता नौ राज्यों तक सिमट गई। 2019 में चुनाव में छह राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन 2020 में मध्यप्रदेश उसके हाथ से निकल गया। 2023 में तीन राज्य हाथ से निकल गये।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-रमेश कुमार ‘रिपु’