देश रोज़ाना: स्वामी महावीर ने हमेशा जात-पात और पाखंड का विरोध किया। उन्होंने सरल और सादा जीवन जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने नीच-ऊंच, अमीर-गरीब जैसे भेदभाव को हमेशा मिटाने की कोशिश की। जब स्वामी महावीर राजवैभव का परित्याग कर दीक्षा धारण करने जा रहे थे, तो उनके साथ-साथ उनके परिवार और दूसरे राजपुरुष भी चल रहे थे। महावीर के दीक्षा धारण करने से सभी दुखी थे। तभी लोगों के बीच से एक व्यक्ति बहुत तेजी से स्वामी महावीर की ओर बढ़ा। साथ चलने वालों ने उसे बहुत रोकने का प्रयास किया, मगर वह उसे रोक नहीं सके। वह अपनी ताकत भर भीड़ को चीरता हुआ महावीर के पास पहुंचा। यह देखकर कई लोग चिल्लाए, अरे इस चांडाल को रोको! कहीं यह महावीर को न छू ले!
दरअसल, वह व्यक्ति हरिकेशी चांडाल था और उस समय चांडालों को नीच जाति का माना जाता था। वे किसी को छूने की हिम्मत भी नहीं कर सकते थे। महावीर ने जब शोर सुना और उस चांडाल को अपनी ओर आते देखा तो उन्होंने साथ चल रहे राजपुरुषों को कहा, उसे मत रोको। उसे मेरे पास आने दो। महावीर की इस बात पर सभी स्तब्ध रह गए, मगर बोलने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। जिनके पास जाने की जिद वह व्यक्ति कर रहा था, जब वही उसे आने के लिए कह रहे हैं, तो भला उसे कौन रोक सकता था। हरिकेशी ने पास आकर महावीर के चरण स्पर्श करने चाहे तो महावीर ने उसे अपने दोनों हाथों से उठाकर गले से लगा लिया।
हरिकेशी का हरिभजन सार्थक हो गया। वह धन्य हो गया। इस घटना को सभी आश्चर्य से देख रहे थे। एक राजकुमार, जो संन्यास लेने जा रहा हो, वह एक अछूत चांडाल को जिसकी छाया छूनी भी वर्जित मानी जाती हो, स्वयं अपने गले से लगा ले। तब के समय में यह एक बड़ी विलक्षण घटना थी। इस घटना से महावीर ने उस समय के समाज में फैली जातिवाद की कुप्रथा को समाप्त करने का संदेश देकर नई शुरुआत की।
– अशोक मिश्र