Friday, November 22, 2024
14.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiस्त्रियों को स्वतंत्र रहने का हक है या नहीं?

स्त्रियों को स्वतंत्र रहने का हक है या नहीं?

Google News
Google News

- Advertisement -

इन दिनों एक हिट फिल्म ‘एनिमल’ की चर्चा बहुत जोरों पर है। फिल्म में जिस तरह की हिंसा दिखाई गई है, वह तो चर्चा का विषय है ही, लेकिन जिस तरह का समाज और स्त्री-पुरुष के संबंधों को व्याख्यायित करने की कोशिश की गई है, वह भयावह है। इतना ही नहीं, फिल्म अपने समानांतर एक सांप्रदायिक संदेश भी लेकर चलती है। संदेश वही है जो आज सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक हलके में देने की कोशिश की जा रही है।

हीरो की पैतृक कंपनी ‘स्वास्तिक’ को दूसरे धर्म वाले से कैसे बचाना है, इसका संदेश भी दिया गया है।  अगर फिल्म ‘एनिमल’ में दिखाई गई हिंसा को दरकिनार कर दें, तो भी स्त्रियों को लेकर सोच विकसित करने की कोशिश की गई है, वह चिंताजनक है। फिल्म बताती है कि अल्फा मर्द ही स्त्रियों की सुरक्षा कर सकते हैं। अल्फा मर्द मतलब दबंग, जो लोगों को डरा-धमका कर रख सकें। स्त्रियों को अपने नियंत्रण में रख सकें।

जिनके एक इशारे पर स्त्रियां कांप जाएं। वे वही करें जो अल्फा मर्द चाहता है। फिल्म के मुताबिक स्त्रियों को स्वतंत्र नहीं रहना चाहिए, उन्हें स्वतंत्र रहने का हक ही नहीं है। फिल्म हीरो-हीरोइन के बीच हुए संवाद के जरिये पितृसत्ताक व्यवस्था की कहानी सुनाई जाती है। प्राचीनकाल में स्त्रियां तय करती थीं कि कौन उनके साथ सोएगा, कौन बच्चे पैदा करेगा, कौन उनकी रक्षा करेगा और कौन उन्हें कविताएं सुनाकर मनोरंजन करेगा। और महिलाएं क्या करेंगी?

सिर्फ मर्द बंदों द्वारा शिकार करके लाए गए मांस को पकाएंगी और अल्फा मर्द से पैदा हुए बच्चों का पालन पोषण करेंगी। वैसे फिल्म में नया कुछ नहीं है। एक परिवार का बेटा अपनी पैतृक संपत्ति की रक्षा के लिए अपने दुश्मनों को मारता जाता है। खून खराबा करता है, लेकिन इसके माध्यम से जो संदेश देने की कोशिश की गई है, वह आधुनिक मानव समाज के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। फिल्म कहीं भी मातृसत्ताक व्यवस्था की बात नहीं करती है।

मानव समाज के विकास क्रम को दर्ज करने वाले इतिहासकारों और नृविज्ञानियों ने मातृसत्ताक व्यवस्था में किसी किस्म के भेदभाव की बात कहीं नहीं लिखी है। मां यानी महिला जब कबीले, गांव, गांवों के समूह या कुनबे की मुखिया होती थी, तब स्त्री-पुरुष का भेद नहीं था। सब शिकार पर जाते थे और जो भी शिकार में मिल जाता था, उस पर सबका अधिकार होता था। यौन संबंधों में भी कहीं कोई दबाव या जबरदस्ती नहीं होती थी। सब परम स्वतंत्र थे। भेदभाव या बलात स्त्रियों को भोगने और उन्हें अपनी संपत्ति समझने की मानसिकता तो पितृसत्ता की देन है।

इसी भाव को पुष्ट करने का प्रयास है एनिमल। यह विचार कि जो कमजोर मर्द होते हैं, वे कविताई करते हैं। काफी भ्रामक विचार है। कविता करने वाला व्यक्ति यौन संबंधों के मामले में कमजोर होगा, यह कैसे कहा जा सकता है? कवि होना, मतलब अपने देश, काल, परिस्थितियों और समाज के प्रति अत्यंत संवेदनशील होना है। इन तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद फिल्म हिट है, तो क्या कहा जा सकता है।

-संजय मग्गू

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

UP News: सहारनपुर में शताब्दी एक्सप्रेस पर पथराव

21 नवंबर को सहारनपुर जिले में नई दिल्ली से देहरादून जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस पर अज्ञात हमलावरों ने पथराव किया। इस घटना में ट्रेन...

Recent Comments