समाज बहुत तेजी से बदल रहा है। उससे भीज्यादा तेजी से बदल रहा है सामाजिक ढांचा। परिवार नामक समाज की सबसे छोटी इकाई में भी काफी कुछ बदलाव देखने को मिल रहा है। पहले संयुक्त परिवार में सभी लोग मिल जुलकर रहते थे। थोड़ा बहुत मनमुटाव होता भी था, तो परिवार के दूसरे सदस्य उसको दूर करवा देते थे। लेकिन अब न केवल परिवार बदल रहे हैं, बल्कि परिवार में विखंडन भी बढ़ता जा रहा है। पति-पत्नी में दूरियां आती जा रही हैं।
इसका कारण सोशल मीडिया पर महिलाओं और पुरुषों की बढ़ती सक्रियता है। इधर कुछ वर्षों से जब से सोशल मीडिया पर अपनी बात कहने, अपनी तस्वीरें पोस्ट करने और रील बनाकर डालने जैसी गतिविधियों ने रिश्तों में दूरी ला दी है। रिश्तों में आई दरार का कारण इंटरनेट मीडिया, रील और फोन पर बहुत ज्यादा व्यस्तता आदि है। हरियाणा में ही पिछले 11 महीनों में 16 हजार मामले जिलों की महिला सेल के पास आ चुके हैं। महिला सेल में आने वाले कुल मामलों में से 40 प्रतिशत मामले इंटरनेट मीडिया और फोन आदि के कारण आ रहे हैं।
शादी से पहले के अफेयर के लगभग 50 प्रतिशत मामले सामने आ रहे हैं। मामूली विवाद होने पर सास-ससुर, जेठ-जिठानी या देवर-देवरानी पर झूठे मुकदमे दर्ज कराने का चलन कुछ ज्यादा ही हो गया है। महिला सेल तक पहुंचने वाले कुल मामलों में 60 प्रतिशत ऐसे ही होते हैं। कुछ मामले ऐसे भी सामने आए हैं कि किसी युवती ने कोई रील बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड किया। उस रील की विषय वस्तु या प्रस्तुति को लेकर किसी ने कोई आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। इसको लेकर पति-पत्नी में बहस हुई और मामला तलाक तक पहुंच गया।
किसी महिला के पूर्व प्रेमी ने सोशल मीडिया पर उसकी शादी से पहले की डाली गई तस्वीर दिखा दी और दोनों में विवाद हो गया। पति आठ-दस घंटे के बाद काम से थका हारा लौटा है और पत्नी को फोन पर बतियाने से ही फुरसत नहीं है। इससे थोड़े दिनों बाद पति-पत्नी में मनमुटाव होने लगता है और बात अंतत: तलाक तक आ पहुंचती है। यह सही है कि इंटरनेट और इससे जुड़ी तकनीक ने समाज को एक नई दिशा दी है। सूचनाओं का विस्फोट हुआ है।
अब दुनिया में कोई भी घटना घटित होती है और थोड़ी देर बाद ही दुनिया के हर कोने पर इसकी सूचना आ जाती है। लेकिन सूचनाओं के इस अजस्र प्रवाह में रिश्ते-नाते बह गए। इनकी बुनियाद कमजोर होती गई। सूचनाओं के विस्फोट ने सब कुछ अपने में समेट लिया। एक ही घर में रहते हुए भी लोगों की आपस में बातचीत नहीं होती है। लोग मोबाइल फोन में ही लगे रहते हैं। मनोरंजन से लेकर संवाद तक के लिए इंटरनेट जरूरी हो गया है। यदि इन हालात से लोग उबरे नहीं, तो परिवार नामक संस्था के बिखराव का खतरा पैदा हो जाए।
-संजय मग्गू