प्रेम विवाह और लिव इन रिलेशनशिप को लेकर पिछले कुछ सालों से राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हो रही है। हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी यह एक मुद्दा बनकर उभरा। शीतकालीन सत्र के दौरान पहले ही दिन नांगल चौधरी से भाजपा विधायक डॉ. अभय सिंह यादव ने इस मुद्दे पर कुछ सवाल खड़े किए।
प्रेम विवाह और लिव इन को कुछ लोग सही नहीं मानते हैं, तो कुछ लोगों को इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती है। सवाल यह है कि क्या सही है और क्या गलत है? इसको कौन तय करेगा। समाज और कानून। कानून इन दोनों को किसी भी रूप में गलत नहीं मानता है। कानून ने सबको यह स्वतंत्रता दी है कि दो बालिग स्त्री और पुरुष अपनी मर्जी से विवाह करने को स्वतंत्र हैं। यदि दोनों लोग पहले से प्रेम करते आ रहे हैं, तो कोई भी दो बालिग स्त्री-पुरुष प्रेम विवाह कर सकते हैं।
ठीक यही बात लिव इन रिलेशनशिप के बारे में लागू होती है। दो बालिग स्त्री-पुरुष बिना विवाह किए एक साथ रह सकते हैं और बच्चे भी पैदा कर सकते हैं। अब तो कानून ने समलैंगिक संबंधों और व्यभिचार को भी मान्यता दे दी है। यह दोनों अब दंडनीय अपराध नहीं रहे हैं। सरकार ने भी इन्हें अपराध नहीं माना है। हां, समाज ने अभी इसको मान्यता नहीं दी है। समाज में अभी इसे हेय दृष्टि से देखा जाता है।
समलैंगिक संबंधों के बारे में तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन प्रेम विवाह हमारे देश में सदियों पहले भी होते रहे हैं। हमारे पूर्वज गंधर्व विवाह करते थे और इसे समाज में मान्यता भी हासिल थी। यह प्रेम विवाह का ही प्राचीन रूप है। तब किसी जीवित या मृत यानी कि किसी जीव जंतु या पेड़-पौधों, सूर्य, चंद्र आदि तारों और ग्रहों को साक्षी मानकर दो बालिग स्त्री और पुरुष विवाह कर लिया करते थे। हमारे प्राचीन ग्रंथों में कई ऐसे उदाहरण मौजूद हैं।
राजा दुष्यंत ने शकुंतला से गंधर्व विवाह ही तो किया था। इसके बाद की कथा तो सर्वज्ञात है। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि प्रेम विवाह में माता-पिता की सहमति को अनिवार्य बनाया जाए। जब दो युवा प्रेम करते हैं और उनके परिजन उनकी शादी कराने को तैयार नहीं होते हैं, ऐसी स्थिति में उन्हें भागकर किसी मंदिर या अदालत में शादी करना ही पड़ता है। यदि माता-पिता की सहमति को अनिवार्य कर दिया गया, तो प्रेम विवाह करना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा।
हां, समलैंगिक संबंधों और व्यभिचार पर कानून और समाज को जरूर गंभीरता से सोचना चाहिए। समाज का एक बहुसंख्यक समुदाय इन दोनों बातों के खिलाफ है। इससे समाज में यौन अराजकता की स्थिति पैदा हो सकती है। लोग यौन संबंधों के मामले में उच्छृंखल हो सकते हैं। दरअसल, प्रेम विवाह, लिव इन रिलेशनशिप, समलैंगिक संबंध और एडल्टरी जैसे मुद्दे काफी संवेदनशील हैं। इनका समाज पर बहुत गहरा असर पड़ता है। इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
-संजय मग्गू