बहुत पुराना मुहावरा है देर आयद दुरुस्त आयद। कांग्रेस ने देर से ही सही एक अच्छा फैसला लिया है क्राउड फंडिंग का। क्राउड फंडिंग मुहिम की घोषणा होने के बाद से ही यह सवाल उठने लगे थे कि क्या कांग्रेस की आर्थिक हालत काफी खराब हो गई है? इसका जवाब है कि हां। 1 फरवरी 2017 से शुरू होने वाले इलेक्टोरल बांड के बाद से भाजपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों के चंदे में भारी फर्क आया है।
इलेक्टोरल बांड की सबसे खास बात यह है कि सत्ताधारी दल को यह पता रहता है कि किसको कितना चंदा मिला, लेकिन बाकी विपक्ष को पता ही नहीं होता कि सत्ताधारी दल को कितना फंड मिला। इसका सबसे बड़ा फायदा सत्ताधारी दल को यह मिलता है कि वह विपक्षी दलों को बड़ा चंदा देने वालों की बांह मरोड़ सकती है। एसोसिएशन आॅफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के मुताबिक बीजेपी के पास 2015-16 में 893 करोड़ रुपये की संपत्ति थी लेकिन साल 2020-21 में ये बढ़ कर 6047 करोड़ रुपये पर पहुंच गई।
वहीं कांग्रेस के पास 2013-14 में कांग्रेस के पास 767 करोड़ रुपये की संपत्ति थी। 2019-20 में ये बढ़ कर ये संपत्ति 929 करोड़ रुपये पर पहुंच गई थी लेकिन 2021-22 में ये घट कर 806 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। क्राउड फंडिंग से कांग्रेस को सिर्फ पैसा ही मिलेगा या कुछ और फायदा होगा। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इससे कांग्रेस एक संदेश देने में सफल हो सकती है कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का बहुत बड़ा हिस्सा भाजपा डकार जाती है। उसे बड़े पूंजीपतियों से चंदा मिलता है।
दूसरा फायदा यह हो सकता है कि वह इस मुहिम को एक जनसंपर्क अभियान की तरह चलाए और अपना जनाधार मजबूत करने का प्रयास करे। तीन राज्यों में चुनाव हारने के बाद भी विपक्षी पार्टियों में सबसे बड़ा जनाधार कांग्रेस का ही है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में लगभग 44 फीसदी वोट मिले थे। अगर कांग्रेस सौ करोड़ रुपये भी क्राउड फंडिंग के जरिये बटोर लेती है, तो वह इसे अपनी राजनीतिक उपलब्धि बताकर पेश कर सकती है।
क्राउड फंडिंग से कई राजनीतिक दलों ने न केवल अपनी आर्थिक दशा ठीक की है, बल्कि चुनावों में जीत भी हासिल की है। आजादी के दौरान क्रांतिकारी भी काउड फंडिंग करते थे, लेकिन उनका तरीका दूसरा होता था। लखनऊ में एक मोहल्ला है चुटकी भंडार। लखनऊ के क्रांतिकारी इस मोहल्ले में रात के अंधेरे में एक मटकी रख आते थे। उन्होंने लोगों से अपील की थी कि देश आजाद कराने के लिए समर्थन देना है, तो रोटी बनाते समय एक चुटकी आटा निकाल कर इस घड़े में डाल दीजिए।
पूरे मोहल्ले से चुटकी भर आटा इकट्ठा होने से मटकी भर जाती थी। रात में ही कोई महिला या पुरुष उस मटकी को उठाकर क्रांतिकारियों तक पहुंचा देता था। इससे उनकी रोटी की समस्या हल हो जाती थी और फालतू आटे को बेचकर वे अपना बाकी काम चलाया करते थे। कांग्रेस भी बस उसी रास्ते पर चल निकली है। उसे इसमें कितनी सफलता मिलती है, यह भविष्य बताएगा।
-संजय मग्गू