देश रोज़ाना: भ्रम, अंधविश्वास और पाखंड किसी भी व्यक्ति के विकास में बाधा बनते हैं। जो व्यक्ति किसी भ्रम में फंसा रहता है, वह ऊहापोह में सही फैसला नहीं ले पाता है। ठीक इसी तरह का अंधविश्वास भी होता है। बिना किसी तर्क संगत ढंग से सोचे-विचारे किसी बात पर आंख मूंदकर विश्वास करना भी उचित नहीं होता है। इक्सीसवीं सदी में भी उत्तर भारत के गांवों में यह विश्वास किया जाता है कि जब कोबरा प्रजाति का सांप बूढ़ा हो जाता है, तो उसके पर निकल आते हैं। वह आसमान में उड़ जाता है। उस समय किसी व्यक्ति पर उसकी छाया पड़ जाए,तो उस व्यक्ति को फालिज (पैरालाइसिस) मार जाता है।
यह अंधविश्वास है। ज्ञान-विज्ञान इस बात की कतई पुष्टि नहीं करते हैं। इसी तरह रस्सी को सांप समझने का मुहावरा भी एक कथा की ओर इशारा करता है। एक संत थे। वे कोई पुस्तक पढ़ रहे थे। रात हो गई थी, लेकिन चंद्रमा निकला हुआ था। उन्होंने अपने शिष्य को पुस्तक देते हुए कहा कि इसे ले जाकर झोपड़ी में रख दो। झोपड़ी में रखे तख्त पर चंद्रमा की रोशनी पड़ रही थी। शिष्य पुस्तक लेकर गया और थोड़ी देर बाद लौटा और कहा कि गुरु जी तख्त पर सांप बैठा हुआ है।
गुरुजी ने कहा कि तुम ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए जाओ। सांप चला जाएगा। शिष्य गया और थोड़ी देर बाद फिर लौटा और बोला, सांप पर मंत्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह तो अब भी है। अब संत ने कहा कि तुम यह दीपक को लेकर जाओ। शिष्य थोड़ी देर बाद लौटा और बोला, गुरु जी वह सांप नहीं रस्सी थी। तब संत ने कहा कि अज्ञान और भ्रम को केवल ज्ञान रूपी दीपक ही दूर कर सकते हैं। जहां ज्ञान-विज्ञान होता है, वहां भ्रम नहीं रह पाता है। ज्ञान होने पर संदेह नहीं रह जाता है।
- अशोक मिश्र