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मोहन की पलटन मोहन-मिश्री जैसी

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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का मंत्रिमंडल न आम है और न सामान्य। इस मंत्रिमंडल का स्वरूप ‘मोहन-मिश्री’ जैसा है। इसमें बूढ़े हो चुके गोपाल भार्गव नहीं हैं तो बूढ़े होकर भी जवान बने रहने वाले कैलाश विजय वर्गीय शामिल किए गए है। यादव मंत्रिमंडल में बाबूलाल गौर की तरह शिवराज सिंह पूर्व मुख्यमंत्री होने के बावजूद शामिल नहीं हैं लेकिन अनेक बार के संसद प्रह्लाद पटेल हैं। ये सब भाजपा की सरकारों में ही मुमकिन है। यानि मोहन की पलटन मोहन – मिसरी जैसी है।

भाजपा जब चाहे तब किसी को भी मूषक को शेर और किसी को भी शेर से चूहा बना सकती है। अब अग्निपरीक्षा मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव की है कि वे शेर और चूहों की इस पलटन के साथ कैसे आगामी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के लिए मध्यप्रदेश को यथास्थिति में बनाए रख सकते हैं।

बेमन से विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले कैलाश विजयवर्गीय ने हालाँकि अपने विनोदी स्वभाव को जीवित रखते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव की तारीफों के पुल बांधना शुरू कर दिया है और स्वीकार कर लिया है कि  मोहन यादव डिग्रियों के मामले में उनसे आगे हैं। लेकिन उनके मन में पोशीदा दर्द अपनी जगह है। जिस समय उनके बेटे के सर पर मौर [मुकुट] सजना था उस समय वे खुद मंत्री बना दिए गए हैं और बेटे आकाश की विधायकी भी चली गई है। ऐसे में अब पूर्व विधायक आकाश विजयवर्गीय को विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह के बेटों की तरह बिना विधायक बने काम करना पड़ेगा।

मोहन यादव मंत्रिमंडल में दया के पात्र पूर्व सांसद राकेश सिंह और प्रह्लाद पटेल भी हैं। राकेश सिंह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके है। वे मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे, लेकिन उनका सपना टूट गया। उनसे ज्यादा सपना टूटने की आवाज पूर्व सांसद प्रह्लाद पटेल के यहां से आई है लेकिन भाजपा हाईकमान ने उसे अनसुना कर दिया। भाजपा कार्यकर्ताओं ने इस आवाज को सुना भी और नहीं भी। क्योंकि सब जानते हैं कि  भाजपा की मोदी चरित मानस में होगा वही जो मोदी-शाह मन भाए। कैलाश, प्रह्लाद और राकेश सिंह के मंत्रिमंडल में रहने से मंत्रिमंडल का वजन बढ़ेगा लेकिन मोहन यादव के सर पर एक दो नहीं अपितु तीन-तीन अप्रत्यक्ष तलवारें हमेशा लटकी रहेंगीं। जो उन्हें चैन से सोने नहीं देंगीं और शायद काम भी न करने दें।

अच्छी बात ये है कि मोहन यादव का मंत्री मंडल तीन स्तरीय है। इसमें कैबिनेट स्तर, राजयमंत्री स्वतंत्र प्रभार और चार अन्य राजयमंत्री बनाए गए हैं। नए मंत्रिमंडल में मोहन यादव का हनुमान कौन बनेगा ये अभी पता नहीं है। वैसे कैलाश विजयवर्गीय एक जमाने में हनुमान की भूमिका में काम कर चुके हैं। कुंवर विजय शाह, कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद सिंह पटेल,  राकेश सिंह, करण सिंह वर्मा, उदय प्रताप सिंह, सम्पतिया उइके, तुलसीराम सिलावट, ऐदल सिंह कंषाना, निर्मला भूरिया, गोविन्द सिंह राजपूत, विश्वास सारंग, नारायण सिंह कुशवाह, नागर सिंह चौहान, प्रद्युम्न सिंह तोमर, राकेश शुक्ला, चैतन्य काश्यप “भैया जी” और इन्दर सिंह परमार ने शपथ ली। राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के रूप में कृष्णा गौर, धर्मेंद्र भाव सिंह लोधी,  दिलीप जायसवाल, गौतम टेटवाल, लखन पटैल और नारायण सिंह पंवार ने शपथ ली। राज्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वालों में नरेद्र शिवाजी पटेल, प्रतिमा बागरी, अहिरवार दिलीप और राधा सिंह शामिल है।

मप्र में भाजपा सरकार की वापसी का मार्ग खोलने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मोहन मंत्रिमंडल से कोई ज्यादा निराशा नहीं हुई। उनके समर्थक गोविंद सिंह राजपूत, तुलसी सिलावट, प्रद्युम्न सिंह तोमर और ऐदल सिंह कंषाना को मंत्रिपद मिल ही गया है। सिंधिया वैसे भी ज्यादा कहां चाहते है। उन्हें तो दो पायलट और दो फॉलो मिल गए यही बहुत है। अब वे चाहे बुंदेलखंड में जाएं चाहे मालवा में, चाहे ग्वालियर में रहें या या चंबल में अगवानी करने के लिए अनुचर मिल ही गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का खास कौन है और कौन नहीं ये कहना मेरे लिए कठिन है क्योंकि उनके तमाम खास विधायकों का नाम मंत्रिमंडल में नजर नहीं आ रहा।

मोहन मंत्रिमंडल को लेकर सबका अपना आकलन है, सबका अपना कयास है। आमतौर पर यही समझा जा रहा है कि मंत्रिमंडल में सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया गया है। आगामी लोकसभा चुनावों को भी मद्देजनर रखा गया है, लेकिन मुझे लगता है कि मोहन मंत्रिमंडल शिवराज मंत्रिमंडल से ज्यादा संतुलित है। ये बात अलग है कि मुख्यमंत्री कि नाते मोहन यादव को भी दिन-रात ‘अलर्ट’ रहकर काम करना पड़ेगा। उन्हें भी सत्ता और संगठन कि साथ गुटों में संतुलन बनाकर चलना पड़ेगा, हालांकि पार्टी हाईकमान ने तमाम छत्रपों को ठिकाने लगाकर मोहन यादव की मुश्किलें आसान कर दीं हैं।

नए मुख्यमंत्री मोहन यादव को अन्य मंत्रिमंडल कि साथ ‘फुल स्विंग’ में काम शुरू करना होगा क्योंकि समय कम है और काम ज्यादा। मुख्यमंत्री को एक तरफ प्रदेश की जनता को सुशासन देना है तो दूसरी तरफ मोदी की गारंटियों को अमली जामा पहनना है और तीसरा सबसे बड़ा काम अपनी छवि को शिवराज सिंह चौहान की छवि से ज्यादा तरल-सरल बनाना है। अभी मोहन यादव की जो छवि है वो एक मुख्यमंत्री की नहीं है, एक कैबिनेट मंत्री की है, उन्हें इस पुरानी छवि से बाहर निकलकर दिखाना होगा। ये काम कठिन है लेकिन असम्भव नहीं। मोहन यादव अपने नाम कि अनुरूप अपनी छवि गढ़ सकते हैं, लेकिन शर्त एक ही है कि वे अपनी उपलब्धता पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री कि मुकाबले ज्यादा बनाए रखें।

नए मुख्यमंत्री कि रूप में सचिवालय यानि बल्ल्भ भवन कि गलियारे सत्ता की दलाली कि केंद्र न बनें, सत्ता कि गलियारों में कमलनाथ सरकार कि कार्यकाल की तरह सन्नाटा भी न हो, इसके लिए बेहतर है कि मंत्रियों की सचिवालय में उपलब्धता और क्षेत्र में उपस्थिति के दिन सुनिश्चत किए जाएं। नौकरशाही को और ज्यादा सक्रिय बनाया जाए। पुलिस का इकबाल बुलंद करने कि लिए पुलिस कि कामकाज में हस्तक्षेप को बंद किया जाये साथ ही पुलिस कमिश्नर प्रणाली की समीक्षा की जाए के इसे बंद करना है या इसका विस्तार करना है? बाकी तो सब ठीक है है। नए मंत्रिमंडल को हम सभी की शुभकामनाएं। (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

-राकेश अचल

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