Editorial: जैसे-जैसे राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का समय नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक हलचल तेज होती जा रही है। तमाम मीडिया मंचों पर इस बात को उछाला जा रहा है कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी इस समारोह में जाएंगी या नहीं। कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने के लिए अखबार और टीवी चैनल्स भी बार-बार कांग्रेस की इस संशय को हवा दे रहा है। कांग्रेस ने अभी यह साफ भी नहीं किया है कि सोनिया गांधी जाएंगी या नहीं। वैसे इंडिया गठबंधन में शामिल कुछ राजनीतिक दलों का दबाव है कि सोनिया गांधी को नहीं जाना चाहिए। जहां तक सोनिया के जाने या न जाने को लेकर नफा-नुकसान के आकलन की बात है, तो कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष के जाने से मुस्लिम मतदाताओं पर फर्क पड़ने वाला नहीं है।
अगर सोनिया प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाती हैं, तो भाजपा को मौका मिल जाएगा कि वह कांग्रेस और सोनिया को राम विरोधी साबित करने का मौका मिल जाएगा। अगर सोनिया गांधी श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने का फैसला करती हैं, तो इसका नकारात्मक प्रभाव कांग्रेस इसलिए नहीं पड़ेगा क्योंकि राम मंदिर के संबंध में सुप्रीमकोर्ट का फैसला आने के बाद देश के आम मुसलमानों ने इसे स्वीकार कर लिया था। उसने इस फैसले का विरोध नहीं किया था। ऐसी स्थिति में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सोनिया गांधी समारोह में जाती हैं, तो हिंदुओं का कुछ प्रतिशत वोट हासिल हो सकता है। चुनाव के दौरान सोनिया गांधी के खिलाफ भाजपा प्रचार भी नहीं कर पाएगी। वैसे सोनिया गांधी पर ईसाई होने का आरोप भाजपा और संघ अक्सर लगाती रही है।
राजीव गांधी से विवाद के बाद सोनिया गांधी ने हिंदू रीति रिवाजों को पूरी तरह से अपना लिया था। वैसे भी हमारे देश में परंपरा रही है कि स्त्री किसी भी कुल, गोत्र, जाति या धर्म की हो, उसकी शादी जिस धर्म या जाति में हो जाती है, तो उसकी पहचान अपने पति के जाति और धर्म से होती है। कांग्रेस शासनकाल में दिल्ली में होने वाली रामलीला के दौरान जिस आस्था और वेशभूषा के साथ सोनिया गांधी श्रीराम, लक्ष्मण और हनुमान के प्रतिरूप की पूजा करती थीं, उससे कतई यह जाहिर नहीं होता था कि वह इटली मूल की ईसाई महिला हैं। वैसे भी वर्ष 1986 में अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाने में सोनिया के पति स्व. राजीव गांधी का ही हाथ था।
बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाए जाने से लेकर, राम की मूर्ति रखे जाने और बाबरी मस्जिद को तोड़े जाने के समय केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी। साल 2019 में राम मंदिर पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीडब्ल्यूसी ने बयान जारी कर फैसले का स्वागत किया था। कांग्रेस की समावेशी विचारधारा रही है जिसमें हर तरह के लोग रहे हैं तो ऐसे समारोह में जाना उसकी विचारधारा के खिलाफ नहीं है। ऐसी स्थिति में अगर कांग्रेस सोनिया गांधी के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में न जाने का फैसला करती है, तो यह उसके लिए आत्मघाती कदम साबित हो सकता है।
- संजय मग्गू