विदेशों में बसे भारतीय आज अपने को ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। वे समझ गए हैं कि वे कहीं भी हों, उनका देश उनके साथ खड़ा है। विपरीत परिस्थिति में वे और उनका परिवार भारत से इतर देश में रहकर भी अकेला ही नहीं है। उसके पीछे भारत सरकार की सुरक्षा की गारंटी हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं था। संकट में विदेश में फंसे भारतीय को अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती थी। वे अपने को असहाय महसूस करते थे।
दो अगस्त 2090 को इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया था। इस युद्ध के समय कुवैत में फंसे भारतीयों को देश वापस लाने पर फिल्म बनी एयर लिफ्ट। ये फिल्म सच्ची कहानी पर आधारित बनी बताई गयी थी। कुवैत में फंसे 1,70,000 से अधिक भारतीय असहाय थे। लेकिन दो भारतीय प्रवासी मैथ्यूज और वेदी ने उन्हें बचाने के लिए बहुत कष्ट और प्रयास किए और यह सुनिश्चित किया कि वे सुरक्षित रूप से अपने देश पहुंच जाएं। यह आपरेशन भारत सरकार ने चलाया था।
इंडियन्स को सुरक्षित निकालने के लिए तब के विदेश मंत्री आईके गुजराल इराक में सद्दाम हुसैन से मिलने पहुंचे थे। सद्दाम हुसैन ने सरकार को भारतीयों के रेस्क्यू आॅपरेशन करने की इजाजत दे दी। 13 अगस्त से लेकर 11 अक्टूबर 1990 (59 दिन) तक 500 फ्लाइट्स के जरिए इतिहास का सबसे मुश्किल एयर रेस्क्यू किया गया। हालाकि सरकार का इस आपरेशन में बड़ा कार्य रहा किंतु मैसेज दूसरा गया।
आज ऐसे आपरेशन के लिए सरकार स्वयं खड़ी हो जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानकारी मिलने के पहले ही स्वयं सक्रिय हो जाते हैं। इतना ही नहीं, आपरेशन की मानिटरिंग भी वे खुद करने लगते हैं। अभी कतर में आठ पूर्व नौसैनिकों को फांसी दिए जाने की खबर आने के बाद भारत सरकार सक्रिय हुई। इसी के फलस्वरूप इस केस में भारत के कतर राजदूत लगे। वे जेल में भारतीय पूर्व नौसैनिकों से मिले। न्यायालय में उनके केस की अपील की गई। इससे फांसी की सजा टल गई। निर्णय के समय कतर में भारत राजदूत और अन्य अधिकारी उनके परिवार के सदस्यों के साथ अपील अदालत में मौजूद थे। मामले की शुरुआत से ही भारत उनके साथ खड़ा है। विदेश मंत्रालय ने इस बारे में कहा कि हम उन्हें सभी कानूनी सहायता देना जारी रखेंगे। अगले कदम पर फैसला लेने के लिए कानूनी टीम के साथ हम लगातार परिवार के सदस्यों के साथ संपर्क में हैं।
अपीलीय कोर्ट का यह फैसला इस मायने में महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमाद अल थानी के बीच दुबई में कॉप-28 सम्मेलन से इतर हुई मुलाकात के चार सप्ताह के अंदर सुनाया गया है। एक दिसंबर को हुई भेंट के बाद पीएम मोदी ने कहा था कि उन्होंने कतर में रह रहे भारतीय समुदाय के बारे में अमीर से बात की है। माना जाता है कि इस भेंट में इन नौसैनिकों का मुद्दा भी उठा था।
भारत सरकार का प्रयास है कि ये सजा पूरी तरह से खत्म हो जाए। सजा खत्म न भी हुई तो लगता है कि इनकी वतन वापसी हो जाएगी। दरअसल, भारत और कतर के लिए बीच दिसंबर, 2014 में कैदियों की अदला-बदली को लेकर संधि हुई थी। इसमें दोनों देशों की एक-दूसरे की जेलों में बंद कैदियों को बाकी बची सजा काटने के लिए उनके देश भेजने का प्रावधान है। सजा कम न होने पर उम्मीद है कि भारत इन आठ पूर्व नौसैनिकों की वतन वापसी की मांग कर सकता है। इस्राइल गजा युद्ध शुरू होने की सूचना पर केंद्र सरकार भारतीयों को वहां से निकालने के लिए सक्रिय हुई। भारत ने वहां से अपने 1309 नागरिक वापस भारत बुलाए। ये कार्य सरल नहीं था किंतु प्रधानमंत्री मोदी इस कार्य में खुद लगे। भारतीयों को वापस लाने के लिए अपने मंत्रियों को भी भेजा।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-अशोक मधुप