पाइथागोरस एक ग्रीक दार्शनिक और गणितज्ञ थे। वे अपने आपको दार्शनिक और बुद्धि का प्रेमी कहा करते थे। उन्हें यूनानी साहित्य में संख्याओं का जनक माना जाता है। उन्हें सबसे ज्यादा पाइथागोरस की प्रमेय के लिए जाना जाता है। कहते हैं कि उन्हें हर वस्तु को बेहतरीन तरीके से सजाने का शौक था।
पाईथोगोरस का जन्म सामोस में हुआ था, जो एशिया माइनर के किनारे पर, पूर्वी ईजियन में एक यूनानी द्वीप है। उन्होंने लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग विद्यालय खोला था। उनके पास कोई निजी संपत्ति नहीं थी। वे विद्यालय में ही रहते थे। उनके बचपन का एक किस्सा है। कहते हैं कि जिस परिवार में उनका जन्म हुआ था, वह बहुत गरीब था। वे लकड़ियां काटकर अपने परिवार का गुजारा करते थे। एक बार की बात है, वे लकड़ियां लेकर बेचने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।
संयोग से उसी समय डेमोक्रिटीज उधर से गुजर रहे थे। उन्होंने देखा कि पाइथागोरस ने बहुत ही कलात्मक ढंग से लकड़ियों का गट्ठर बांध रखा था। उन्होंने पाइथागोरस से कहा कि क्या वह इसको खोलकर दोबारा बांध सकता है। पाइथागोरस ने हां कहते हुए लकड़ियों को बिखरा दिया और दोबारा उसी ढंग से गट्ठर बांध दिया।
यह देखकर डेमोक्रिटीज ने उससे पूछा कि क्या वह पढ़ना-लिखना चाहता है? पाइथागोरस ने कहा कि हां, मैं पढ़ना चाहता हूं। तो डेमोक्रिटीज ने कहा कि चलो मेरे साथ। पाइथागोरस ने परिवार से इजाजत ली और चल पड़े अपने गुरु के साथ। अपनी मेहनत और लगन से पाइथागोरस यूनान के महान दार्शनिक और गणितज्ञ बने। डेमोक्रिटीज को अपने शिष्य पर बहुत गर्व था। उन्होंने अपने साथ-साथ गुरु का भी नाम अमर कर दिया।
-अशोक मिश्र