पारसी संत अजर कैवान रहस्यवादी या कहिए गूढ़वादी दर्शन से प्रेरित थे। उन्होंने 28 साल एकांत में बिताए थे। उनका जन्म 1533 इरान के शिराज में हुआ था। इनके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। कहा जाता है कि यह अपने शिष्यों के साथ घूमते हुए भारत आए थे। उन्होंने कश्मीर और पटना का दौरा किया था। बाद में वे अपने शिष्यों के साथ पटना में बस गए थे और उनकी 75 साल की उम्र में पटना में निधन हो गया था।
उनकी समाधि पटना के निकट अजीमाबाद गांव में है। गुजराती साहित्य में उन्हें दस्तूर कहा गया है। उनके बारे में कहा जाता है कि वे अकबर के दरबार में भी गए थे। एक बार की बात है। एक व्यापारी ने अपना सारा कारोबार अपने बेटों को सौंप दिया और साधु हो गया। उसने कुछ शिष्य भी बना लिए। इन शिष्यों ने आसपास के इलाकों में उसे सिद्ध संत के रूप में प्रचारित कर दिया। लोग उसके पास अपनी समस्याएं लेकर आते। वह उनकी समस्याओं को दूर करने का ढोंग करता था। लोग उसको दान-दक्षिणा भी खूब देते थे।
एक दिन उस साधु बने व्यापारी की अजर कैवान से मुलाकात हो गई। उसने अजर कैवान से कहा कि जब मैं व्यापार करता था, तो मुझे अपने धन के चोरी जाने या लूट लिए जाने का भय सताता रहता था। कोई भी व्यक्ति मेरे पास आता था, तो लगता था कि यह मेरा सब कुछ लूटने आया है। लेकिन अब मैं चैन की नींद सोता हूं। व्यापार से भी ज्यादा कमाई होती है। इस पर संत अजर कैवान ने कहा कि संत का काम लोगों का भला करना है, उन्हें लूटना नहीं। जो सच्चा संत होता है, वह लोगों की भलाई के लिए बेचैन रहता है। ऐसी स्थिति में उसे नींद कैसे आ सकती है। अच्छा तो यह होता कि आप व्यापार ही करते रहते। आपकी वजह से लोगों का संतों पर से विश्वास खत्म हो जाएगा।
-अशोक मिश्र