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सहकारी खेती से मालामाल हो सकते हैं हरियाणा के किसान

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पूरी दुनिया में जब नदियों के किनारे सभ्यताएं बसीं, तो अपनी भोजन की आवश्यकताओं की पूरा करने के लिए खेती की जाने लगी। यह भी सच है कि खेती करने की जरूरत इंसान को अपने लिए नहीं पड़ी थी, बल्कि पाल्य पशुओं के चारे के रूप में हुई थी। लेकिन जैसे-जैसे जरूरतें बढ़ती गईं, लोगों ने खेती से होने वाली उपज का उपयोग अपने लिए करने लगा। ऐसा लगभग दुनिया की हर सभ्यताओं में हुआ। लेकिन जब मानव समाज विकसित हुआ और उद्योग-धंधों का आविष्कार हुआ, तो कुछ सभ्यताओं ने खेती को दोयम दर्जे का स्थान दिया और उद्योग-धंधों को प्रमुखता दी।

भारत सदियों तक कृषि प्रधान ही बना रहा। आज भी तमाम औद्योगिक विकास के बावजूद अधिसंख्य आबादी की आजीविका का साधन खेती ही है। हरियाणा में भी एक बहुत बड़ी आबादी खेती पर ही निर्भर है। हरियाणा सिंधु घाटी की सभ्यता काल से ही कृषि प्रधान रहा है। इसके बहुत सारे प्रमाण भी मिलते हैं। वर्तमान समय में कृषि पर संकट गहराने लगा है क्योंकि किसानों की लागत बढ़ती जा रही है और उनका मुनाफा लगातार घटता जा रहा है।

इस असंतुलन को रोकने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल पिछले नौ साल से प्रयासरत हैं। उन्होंने किसानों की आय में वृद्धि और कृषि उपज बढ़ाने के लिए कलस्टर योजनाएं शुरू करने के निर्देश अधिकारियों को दिए हैं। इससे पहले भी प्रदेश सरकार ने फसल विविधीकरण, सूक्ष्म सिंचाई योजना, पशु नस्ल सुधार, जैविक खेती, प्राकृतिक खेती और सहकारी खेती जैसी योजनाओं के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि का प्रयास किया है। हरियाणा किसान कल्याण प्राधिकरण की आमसभा की बैठक में मुख्यमंत्री ने कई घोषणाएं कीं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश के किसान इसरायल की तर्ज पर सहकारी खेती कर सकते हैं। बेहतर तो यही होगा कि किसान प्राकृतिक खेती पर ध्यान दें। प्राकृतिक खेती एक ऐसी तकनीक है जिसमें किसान को अपने खेत की जुताई नहीं करनी होती है। खेत में उगी खरपतवार ही अनाज की उपज बढ़ाने में सहायक होते हैं। इस तरह की खेती में रासायनिक खादों की भी जरूरत नहीं होती है। रासायनिक खादों का उपयोग न होने से इनका मूल्य भी सामान्य अनाजों से कहीं ज्यादा होता है और ये विभिन्न प्रकार की बीमारियों के वाहक भी नहीं होते हैं। मुख्यमंत्री ने तो बैठक में यहां तक घोषणा की कि रासायनिक खादों का उपयोग न करने वाले किसानों को उनकी उपज का मूल्य एमएसपी से कहीं ज्यादा मिलेगा। प्राकृतिक खेती का एक लाभ यह है कि इसके लिए पानी की कम जरूरत होगी। इस तरह जल संरक्षण भी होगा। जो भी पंचायत अपने गांव को केमिकल फ्री खेती वाला गांव घोषित करेंगे, उनके यहां उपजे अन्न की ब्रांडिंग और पैकेजिंग सरकार सुनिश्चित करेगी।

-संजय मग्गू

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