शास्त्रों में ‘अयोध्या’ को तीर्थ नगरी एवं मोक्षदायिनी कहा गया है। आज भगवान श्रीराम की दिव्य चेतना का पूरे देश में आध्यात्मिक प्रवाह दिख रहा है। प्रभु राम ने मानव के स्वभाव को त्रेता युग में अपनी पावन एवं संघर्षशील भूमिका एवं अपने जीवन दर्शन से परिभाषित किया। राम का अलौकिक व्यक्तित्व ही ऐसा था कि रावण ने भी अपने अंतिम मृत्यु काल में राम का स्मरण किया। आदर्श एवं मर्यादा के प्रतीक प्रभु राम के मंदिर के निर्माण से विश्व के सारे राम भक्त उत्साहित हैं। वास्तव में 22 जनवरी की राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा श्री राम का राज्याभिषेक ही है।
प्रभु राम एक विराट सांस्कृतिक पुरुष भी हैं। सिख, जैन, बौद्ध आदि भारतीय पंथों के साथ मुसलमान और ईसाइयों तक को राम कथा ने उनके हृदय को छुआ है। सिख धर्म में भी राम को आराध्य माना गया है। तुलसीदास ने रामचरित मानस में राम के चरित्र को बहुत प्रभावित तरीके से लिखा है। रामचरित मानस को महात्मा गांधी ने भक्ति साहित्य की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक कहा था। आज रामचरित मानस विश्व की महानतम साहित्यिक कृतियों में एक है। गुरु गोविंद सिंह द्वारा रचित ‘चौबीस अवतार’ में भी राम के महात्म्य का वर्णन है। कबीर, रहीम ने भी राम के आदर्शों पर लेखनी चलाई है।
प्रभु राम का दर्शन, जीवन मूल्यों और सामाजिक समरसता से सदा जुड़ा रहा। उनका दिव्य दर्शन पूरे भारतीय जीवन संस्कृति को एक नई दिशा देने का काम करता है। राम, मर्यादा पुरुषोत्तम होने के साथ ही सत्य निष्ठा के प्रतीक हैं। उनका निष्कलंक आचरण एक आदर्श मनुष्य के रूप में सामने है। वे सदैव कर्तव्य पथ पर प्रतिबद्ध दिखते हैं। विभिन्न भारतीय भाषाओं में भी राम साहित्य लिखा गया है। मराठी, बांग्ला, तमिल, तेलुगू ओड़िया, गुजराती, मलयालम, कन्नड़, असमिया, कश्मीरी, उर्दू अरबी, फारसी, संथाली अनेक भाषाओं में राम कथा लिखी गई है। प्रभु राम के आदर्श की व्याख्या की गई है।
भारतवर्ष की सभ्यता एवं संस्कृति के पुरोधा प्रभु राम को कहा गया है। ऋषिकुल की परंपरा का निर्वाह करते हुए प्रभु राम एक दिव्य प्रतीक पुरुष के रूप में प्रकट होते हैं। अगस्त्य, विश्वामित्र, वशिष्ठ जैसे ऋषियों की हमारी भूमि रही है और हमारी संस्कृति ऋषि प्रधान रही है। कवि कालिदास के रघुवंश में भी राम कथा की दिव्य आभा दिखती है। तुलसीदास की रामचरित मानस में प्रभु राम के अलौकिक पक्षों को रेखांकित किया गया है। इसमें सत्य निष्ठा के छवि दिखाई देती है। वास्तव में मानव जीवन के मूल्यों को संवारने के साथ आज अयोध्या में त्रेता युग के पूरे वैभव को पुनर्स्थापित किया जा रहा है।
आज अयोध्या पूरी गरिमा के साथ विभूषित हो रही है। कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के चक्र पर स्थापित है। अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण देश के आध्यात्मिक, भावनात्मक एवं पौराणिक मान्यताओं को पुख्ता करता है। यह केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान के जागरण का भी उद्घोष है। राम जन्मभूमि आज समर्थ शक्तिशाली समृद्ध भारत के प्रतीक के रूप में खड़ा है, साथ ही यह मंदिर राष्ट्रीय एकता, लोकतांत्रिक मूल्यों एवं मर्यादा का भी प्रतीक है।
त्रेता युग के अयोध्या की भव्यता आज विश्व स्तर पर एक अद्वितीय उदाहरण के रूप में सामने दृष्टिगोचर हो रही है। प्रभु राम तो सबके हैं यह मंदिर निर्माण समग्र रूप से राष्ट्र के समस्त जाति, धर्म मजहब से ऊपर उठकर आपसी भाईचारे का संदेश दे रहा है। इतिहासकार बताते हैं कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव भी 1510-11 ईस्वी में अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर आए थे। देखा जाए तो आज 21वीं सदी के आधुनिक संस्थान के चार सबसे बड़े ध्येय यही तो हैं। श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा देश में सद्भाव, समन्वय, गौरवशाली भारत की समृद्धि,विकास, के साथ पुरातन ऋषि परंपरा की नींव मजबूत करती दिखाई दे रही है ।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-सतीश उपाध्याय