उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन दिनों काफी व्यस्त हैं। अयोध्या में श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम को सफल बनाने में उनकी भूमिका सबसे बड़ी रही है। योगी जिस गोरक्ष पीठ के महंत हैं, उसका अयोध्या से गहरा जुड़ाव रहा है। इस पीठ ने राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका निभाई है। योगी गोरक्ष पीठ के 1994 से महंत हैं। 1998 में वे गोरखपुर से सांसद चुने गए और तभी से अयोध्या में श्रीराम मंदिर को लेकर वे सड़क से संसद तक आवाज उठाते रहे। वर्ष 2019 के नवंबर माह में जब श्रीराम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय आया, तब योगी के हाथों में ही उत्तर प्रदेश की बागडोर थी।
तब यह माना जा रहा था कि यदि निर्णय हिंदुओं के पक्ष में आया तो मुस्लिम नाराज हो सकते हैं। उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है, लेकिन यह योगी की प्रशासनिक कुशलता थी कि सब कुछ शांतिपूर्वक रहा। स्वयं योगी ने इस बात को जोर देकर कहा था कि एक चींटी भी नहीं मरेगी और हुआ भी वही। एक तरह से उनकी देखरेख में ही अयोध्या धाम का कायाकल्प हुआ है। एक बार अयोध्या में जब परिक्रमा पर समाजवादी पार्टी की सरकार ने रोक लगा दी थी। उस समय योगी आदित्यनाथ परिक्रमा पर जाने के लिए अड़ गए थे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
एक बार और ऐसा मौका आया, जब वो अयोध्या में अखंड कीर्तन में भाग लेने के लिए जा रहे थे तो उन्हें जबरन रोका गया। गोरक्ष पीठ का तो अयोध्या में श्रीराम मंदिर आंदोलन से गहरा नाता रहा है। गोरक्ष पीठ की चार पीढ़ियां मंदिर आंदोलन से जुड़ी रही हैं। 1855-85 में गोरक्ष पीठ के महंत रहे गोपालनाथ महाराज मंदिर आंदोलन को लेकर सक्रिय रहे। उन्होंने क्रांतिकारी अमीर अली और आंदोलन में सक्रिय बाबा रामचरण दास के साथ विवाद हल करने की पहल की थी। उस समय अमीर अली का यही मत था कि राम जन्मभूमि हिंदुओं को सौंपी जानी चाहिए।
1949 में जब अयोध्या में विवादित ढांचे में रामलला का प्रकटीकरण हुआ था, तब गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ भी मौजूद थे और साधु-संतों के साथ वहां कीर्तन कर रहे थे। यही नहीं, महंत दिग्विजयनाथ ने राम मंदिर की शिला पूजन में भी भाग लिया था। महंत अवैद्यनाथ वर्ष 1984 में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष चुने गए थे, उनके नेतृत्व में ऐसा आंदोलन खड़ा हुआ था, जिसने राम मंदिर को लेकर सामाजिक और राजनीतिक क्रांति का शंखनाद किया। वर्ष 1986 में जब कोर्ट के आदेश पर अयोध्या में विवादित परिसर का ताला खोला गया था तो उसे समय भी गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महंत अवैद्यनाथ मौजूद थे।
योगी आदित्यनाथ उन्हीं के शिष्य हैं। नवंबर 2019 को जब सुप्रीम कोर्ट ने श्रीराम मंदिर को लेकर ऐतिहासिक निर्णय दिया था, तब स्वयं योगी आदित्यनाथ ने एक फोटो साझा की थी, जिसमें रामशिला के साथ गोरक्ष पीठ के पूर्व महंत दिग्विजयनाथ, महंत अवैद्यनाथ और परमहंस रामचंद्र दिखाई दे रहे हैं। योगी ने लिखा था कि गोरक्षपीठाधीश्वर युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज, परम पूज्य गुरुदेव गोरक्षपीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी महाराज और परमहंस रामचंद्र दास जी महाराज को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
योगी ने उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते ही प्रण लिया था कि अयोध्या का कायाकल्प होगा। वे अपनी बात पर खरे उतरे हैं। जिस फैजाबाज जिले में अयोध्या नगरी आती थी, उस फैजाबाद का नामोनिशान मिट चुका है। अयोध्याधाम को सक्षम, आधुनिक, सुगम्य, सुरम्य, भावात्मक, स्वच्छ और आयुष्मान नगर के रूप में स्थापित करने का उनका संकल्प आज पूरा होता दिख रहा है। यह भी एक रिकॉर्ड है कि वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक वे 65 बार से ज्यादा अयोध्या जा चुके हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-विनोद पाठक