सन 2018 को केंद्र सरकार ने गरीबों को पांच लाख रुपये तक की इलाज की गारंटी देते हुए आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत की थी। योजना वाकई अच्छी थी। लोगों ने इसका खुले दिल से स्वागत भी किया। देखते ही देखते देश भर में 30 करोड़ लोगों के आयुष्मान भारत योजना के कार्ड बन गए। 26 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में अब तक 6.2 करोड़े से अधिक लोगों का इलाज भी हो चुका है। जिनकों भी यह सुविधा हासिल हुई, उन्होंने और उनके परिवारों ने मुक्त कंठ से इस योजना की सराहना की। लेकिन इस योजना के चलते राज्य सरकारों का हाथ तंग होता गया और आज वे परेशानी महसूस कर रहे हैं।
कारण यह बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार से उनको सही हिस्सेदारी नहीं मिल रही है। कुछ राज्य सरकारों ने तो बाकायदा केंद्र सरकार को चिट्ठी तक लिखी है कि आयुष्मान भारत योजना के तहत खर्च होने वाली राशि में से 60 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार वहन करे और 40 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार दे। अभी राज्य सरकारों को 60 से 70 फीसदी हिस्सा खर्च करना पड़ रहा है जिसकी वजह से उनके खजाने पर बोझ बढ़ता जा रहा है। कई राज्यों ने तो केंद्र सरकार द्वारा तय की गई सीमाओं का भी अतिक्रमण किया है और उन्होंने न केवल आयवर्ग की सीमा बढ़ा दी है, बल्कि इलाज पर खर्च होने वाली रकम भी बढ़ा दी है। हरियाणा में प्रदेश सरकार ने चिरायु योजना के तहत लाभान्वित परिवारों की सालाना आय 1.80 लाख रुपये से बढ़ाकर तीन लाख रुपये कर दी है।
हरियाणा सरकार को ही आयुष्मान भारत योजना के मद में खर्च होने वाली लगभग कुल राशि 421 करोड़ रुपये में से 312 करोड़ रुपये भरने पड़ रहे हैं। जबकि इस मद में केंद्र सरकार केवल 109 करोड़ रुपये ही दे रही है। राज्य सरकारों ने केंद्र से अनुरोध किया है कि पांच साल से प्रीमियम राशि भी नहीं बढ़ाई गई है। शुरुआती दौर में केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों से आयुष्मान योजना को लेकर काफी विचार विमर्श किया था। तब यह तय किया गया कि प्रति परिवार पांच लाख रुपये तक के बीमा के लिए प्रीमियम राशि 1051 रुपये पर्याप्त होगी।
केंद्र अपनी तय की गई राशि 630 रुपये देता आ रहा है। जबकि कुछ राज्यों में बीमा राशि दस लाख हो जाने से प्रीमियम राशि दो हजार रुपये तक पहुंच गई है। ऐसे में बढ़ी हुई रकम का भुगतान राज्यों को करना पड़ता है। यह राशि प्रीमियम की 70 प्रतिशत के आसपास बैठती है। अब केंद्र सरकार बीमा राशि पांच लाख से बढ़ाकर दस लाख करने पर विचार कर रही है। यदि ऐसा होता है, तो राज्य सरकारों पर बोझ बढ़ना निश्चित है क्योंकि जिन राज्यों ने पहले से ही बीमाराशि बढ़ा रखी है, उन्होंने फिर से बीमा राशि बढ़ानी पड़ सकती है। यदि केंद्र सरकार ने शीघ्र इस मामले में राज्यों की मदद नहीं की, तो वित्तीय भार बढ़ने से कई योजनाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। राज्यों को अपने आवश्यक खर्चों को पूरा करने के लिए कर्ज भी लेना पड़ सकता है। वैसे भी देश के ज्यादातर राज्यों ने पहले से ही बहुत सारा कर्ज ले रखा है जिसकी वजह से वे पहले से ही परेशान हैं।
-संजय मग्गू