यह संयोग ही है कि बिहार के जननायक कर्पूरी ठाकुर की सौवीं जयंती और राममंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा में दो दिन का अंतराल रहा। उस पर पिछड़ों के हिमायती और बिहार के पूर्व सीएम स्व. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान भी केंद्र सरकार ने करके बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भारत रत्न का ऐलान होते ही पीएम मोदी को धन्यवाद देने में कोई देर भी नहीं लगाई। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा के पीछे निस्संदेह चुनावी समीकरण है। एक ओर तो पूरा उत्तर भारत इन दिनों राममय हो रहा है।
आस्था का उफान जोरों पर है। लाखों श्रद्धालु अयोध्या आ रहे हैं। राम नाम के जयकारे लगाए जा रहे हैं। लेकिन बिहार के हालात उत्तर प्रदेश जैसे नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि बिहार में राम मंदिर को लेकर कोई उत्साह नहीं है। भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ-साथ आम लोगों ने भी यहां के मंदिरों में पहुंचकर अपनी आस्था व्यक्त की है। चौक-चौराहों पर पटाखे चलाए गए हैं, दीये जलाए गए हैं। लेकिन कुछ दिनों बाद आज जैसा उत्साह बिहार में बना रहेगा, यह नहीं कहा जा सकता है। मंडल पर कमंडल भारी पड़ेगा या कमंडल को मंडल शिकस्त दे देगा, इसके बारे में कोई राय व्यक्त करना जल्दबाजी होगी। यह सही है कि बिहार की राजनीति में मंडल की राजनीति शुरुआती दौर से ही हावी रही है।
वह कर्पूरी ठाकुर ही थे जिन्होंने वर्ष 1977 और उसके बाद अपने ढाई साल के शासनकाल में पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत राज्य की नौकरियों में आरक्षण लागू किया था। पिछड़ों के मसीहा के रूप में विख्यात कर्पूरी ठाकुर ने पिछड़ों के लिए नौकरियों और राजनीति में जो द्वार खोले थे, उसी रास्ते पर उनके नीतीश कुमार और लालू यादव ने चलकर बिहार की राजनीति में शीर्ष को छुआ था। दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों में आज भी जितनी पैठ लालू यादव की है, उतनी शायद ही किसी की हो।
भाजपा के साथ जब नीतीश कुमार थे, तो उन्होंने लालू यादव के वोट बैंक को थोड़ा बहुत नुकसान जरूर पहुंचाया था। अब जब लालू यादव और नीतीश कुमार एक साथ हैं, तो भाजपा के लिए सिर्फ राममंदिर के सहारे लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ा पाना आसान नहीं दिख रहा है। यही वजह है कि भाजपा बिहार में कर्पूरी ठाकुर जयंती बहुत जोरशोर से मना रही है। बिहार में भाजपा का अपना कोई विरासत तो है नहीं, यही वजह है कि वह कर्पूरी ठाकुर की जयंती और भारत रत्न देने के बहाने पिछड़ों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।
अपने मुख्यमंत्रित्व काल में जब कूर्पूरी ठाकुर ने 27 प्रतिशत का आरक्षण लागू किया था, तब बिहार के सवर्णों ने उन्हें अपशब्द कहे थे। भाजपा तब सवर्णों की पार्टी मानी जाती थी। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। कोई भी पार्टी कर्पूरी ठाकुर की विरासत को छोड़ना नहीं चाहती है। सभी राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब कर्पूरी ठाकुर के नाम पर पिछड़ों को अपने पाले में करना चाहते हैं। हां, भाजपा ने भारत रत्न का ऐलान करके एक बहुत बड़ा दांव चल दिया है।
-संजय मग्गू