आज अयोध्या में भगवान श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की पुण्यबेला में देश राममय है। अयोध्या में त्रेता युग उतर आया है। चतुर्दिक रामनाम की गूंज से प्रकृति का कण-कण ध्वनित और रोमांचित है। शताब्दियों की अधूरी आस पूरी हुई है। सनातन संस्कृति के महाप्रतिमान और लोक जीवन के आराध्य भगवान श्रीराम भारत राष्ट्र की आत्मा हैं। अयोध्या के मंदिर में श्रीरामलला के साथ भारत राष्ट्र की आत्मा की भी प्राण-प्रतिष्ठा हुई है। इस पुनीत पुण्यबेला में लोक मंगलकारी राजीव नयन भगवान श्रीराम को शत-शत प्रणाम। कई सहस्रताब्दियों पहले अयोध्या में प्रभु श्रीराम का प्राकट्य हुआ था। तब निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर गया था।
गंधर्वों का दल प्रभु श्रीराम के गुणों का गान कर रहे थे। आकाश में घमाघम नगाड़े बज रहे थे। नाग, मुनि और देवता प्रभु श्रीराम की स्तुति और आराधना में जुटे थे। आज भी अयोध्या समेत संपूर्ण राष्ट्र में वैसा ही राममय वातारण है। रामनाम शब्द के प्रस्फुटन, कीर्तन, यज्ञ, हवन-पूजन से त्रेता युग चरितार्थ होता दिख रहा है। भगवान श्रीरामलला का भव्य-दिव्य मंदिर छटाओं से अलंकृत है। श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ भारत भूमि की शुभता-धन्यता का नया सर्ग शुरू हुआ है। प्रभु श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा से एक बार फिर राष्ट्र रामराज्य की ओर अग्रसर होगा।
राष्ट्र के जन दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्त होंगे। सकल जन का कल्याण होगा। दुष्टों और समाज-राष्ट्रद्रोहियों और विरोधियों का पतन होगा। भगवान श्रीराम साक्षात परमब्रह्म ईश्वर हैं। संसार के समस्त पदार्थों के बीज हैं। संसार के सूत्रधार हैं। वैदिक सनातन धर्म की आत्मा और परमात्मा हैं। सद्गुणों के भंडार हैं। उनकी प्राण-प्रतिष्ठा से भारत का भाग्योदय होगा। भारतीय जनमानस भगवान श्रीराम के जीवन पद्धति को अपना उच्चतर आदर्श और पुनीत मार्ग मानता है।
शास्त्रों में भगवान श्रीराम को लोक कल्याण का पथप्रदर्शक और विष्णु के दस अवतारों में से सातवां अवतार कहा गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ता है, तब-तब भगवान श्रीराम धरा पर अवतरित होकर दुष्टों का संहार करते हैं। वे शिवजी के परम पूज्य और प्रियतम अतिथि हैं।
संसार भी भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम मानता है। वे एक आदर्श भाई, आदर्श स्वामी और प्रजा के लिए नीति कुशल व न्यायप्रिय राजा हैं। भगवान श्रीराम का रामराज्य जगत प्रसिद्ध है। हिंदू सनातन संस्कृति में भगवान श्रीराम द्वारा किया गया आदर्श शासन ही रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। रामराज्य में कोई भी अल्पमृत्यु और रोगपीड़ा से ग्रस्त नहीं था। सभी जन स्वस्थ, गुणी, बुद्धिमान, साक्षर, ज्ञानी और कृतज्ञ थे। वैश्विक स्तर पर रामराज्य की स्थापना गांधी जी की भी चाह थी। गांधी जी ने भारत में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद ग्राम स्वराज के रुप में रामराज्य की कल्पना की थी।
आज भी शासन की विधा के तौर पर रामराज्य को ही उत्कृष्ट माना जाता है और इसका उदाहरण दिया जाता है। संसार भगवान श्रीराम को मयार्दा पुरुषोत्तम मानता है। इसलिए कि उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सत्य और मयार्दा का पालन करना नहीं छोड़ा। पिता का आदेश मान वन गए। भगवान श्री राम को कर्तव्यपरायणता के कारण भारतीय सनातन परिवार का आदर्श प्रतिनिधि कहा जाता है। उन्होंने लंकापति रावण का वध कर मानव जाति को संदेश दिया था कि सत्य और धर्म के मार्ग का अनुसरण कर जगत को आसुरी शक्तियों से मुक्त किया जा सकता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परंपरा ह्यरघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाई पर बचन न जाईह्ण की थी। भगवान श्रीराम सभी प्राणियों के लिए संवेदनशील थे। उन्होंने पंपापुर के वन्य जातियों को स्नेह से सीचिंत कर अपना मित्र बनाया। भगवान श्रीराम और वानरराज सुग्रीव की मित्रता आदर्श मित्रता का अनुपम उदाहरण है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-अरविंद जयतिलक