पहले श्रीलंका और अब मालदीव भारत के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। इन दोनों देशों ने संकट के समय भारत से मदद ली और अब भारत को आंख दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे देश के सबसे छोटे एक जिले के बराबर क्षेत्रफल और जनसंख्या वाले देश मालदीव ने अब चीन के साथ हाथ मिला लिया है। मालदीव ने अपने देश में चीन के जासूसी जहाज शियांग यांग हांग-3 को आने की इजाजत दे दी है। मालदीव के नए चुने गए राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू ने बड़े गर्व से कहा कि हम अपने दोस्ताना देशों के जहाज का स्वागत करते हैं।
पिछले कई दशक से भारत से मित्रतापूर्ण व व्यवहार करने वाले मालदीव ने अपनी नीतियों में तब बदलाव किया, जब मोहम्मद मोइज्जू राष्ट्रपति का चुनाव जीते। मालदीव की यह बहुत पुरानी परंपरा रही है कि जब भी वहां नया राष्ट्रपति चुना जाता था, तो वह सबसे पहले भारत की यात्रा करता था। मोइज्जू ने इस परंपरा को तोड़ा और वे सबसे पहले चीन गए। अब चीन का जासूसी जहाज मालदीव जा रहा है जो फरवरी में किसी दिन वहां पहुंचेगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि एशियाई देशों को लेकर हमारी विदेश नीति कुछ कमजोर पड़ी है।
हमने अपने पड़ोसियों पर ध्यान देना शायद कुछ कम कर दिया है, तभी तो वे चीन के शिकंजे में फंसते जा रहे हैं। चीन बहुत पहले से ही भारत को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता रहा है। विदेश नीति और व्यापार के मामले में भारत सचमुच चीन के मुकाबले में पिछले दो-ढाई दशक से आ खड़ा हुआ है। भारत की अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर स्वीकार्यता भी बढ़ी है। विकसित देशों ने भारत को आजादी के बाद से ही महत्व देना शुरू कर दिया था। अब तो भारत विकसित देशों की अर्थव्यवस्था को पछाड़ते हुए आगे बढ़ रहा है। भारत तो हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा है।
चीन के प्रभाव को हिंद प्रशांत क्षेत्र में कम करने और सामरिक महत्व को देखते हुए भारत ने अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के साथ समुद्री रक्षा मंच क्वाड का गठन किया है। चीन क्वाड के गठन को अपने खिलाफ मानता है। यही वजह है कि भारत को घेरने के लिए वह हमारे पड़ोसी देशों को आर्थिक सहायता के नाम पर अपने पक्ष में खड़ा करने की कोशिश कर रहा है। यही वजह है कि वह बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान, बर्मा आदि देशों में भारी भरकम पूंजी निवेश करके उन्हें भारत के खिलाफ भड़काने की कोशिश करता रहता है। अभी एक-डेढ़ साल पहले जब श्रीलंका में राजपक्षे परिवार के खिलाफ वहां की आम जनता ने बगावत की थी, तब भी भारत उस संकट की घड़ी में श्रीलंका के साथ खड़ा था। पूरी तरह दिवालिया हो चुके श्रीलंका की भारत ने आर्थिक सहायता के साथ अनाज, गैस, मिट्टी का तेल और दवाएं भेजकर पड़ोसी धर्म निभाया था। तब चीन श्रीलंका की मदद करने को आगे नहीं आया था। ऐसे संकट के समय भी चीन अपना बकाया मांगता रहा।
-संजय मग्गू