हरियाणा सरकार ने बेरोजगार युवाओं के हित में फैसला लिया है। पुलिस विभाग में भर्ती होने के इच्छुक युवाओं के लिए छह हजार पदों पर भर्ती होने अवसर शीघ्र मिलने वाला है। इसमें से पांच हजार पद पुरुषों और एक हजार पद महिलाओं के लिए होंगे। इतना ही नहीं, ओवरएज हो चुके युवाओं को उम्र सीमा में तीन साल की छूट दी गई है। यह सभी जानते हैं कि कोरोना काल में पूरे देश की सारी व्यवस्थाएं कोरोना को नियंत्रित करने में ही लग गई थीं। ऐसी स्थिति में पुलिस विभाग में भर्ती करने का मौका ही नहीं मिला। उसके बाद भी सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के चलते भर्तियां नहीं निकाली गईं।
पुलिस में भर्ती होने की उम्मीद लगाए युवाओं ने सरकार के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि जो लोग पिछले तीन साल से पुलिस भर्ती का इंतजार कर रहे थे, वे निर्धारित आयु सीमा पार कर चुके हैं। इसमें इन युवाओं का कोई दोष भी नहीं है। ऐसी स्थिति में सरकार को निर्धारित आयु सीमा में बढ़ोतरी करनी चाहिए। युवाओं का तर्क भी वाजिब था। मनोहर लाल सरकार ने युवाओं की बात मानते हुए आखिरकार फैसला लिया कि युवाओं को आयु सीमा में तीन साल की छूट दी जानी चाहिए। लेकिन प्रदेश सरकार ने इसके साथ एक शर्त भी लगाई है कि यह छूट सिर्फ एक बार ही मिलेगी।
यह एक विडंबना ही है कि प्रदेश में पिछले कई सालों से पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर और सिपाही के एक तिहाई पद रिक्त हैं। पूरे प्रदेश में 75186 पद सब इंस्पेक्टर और सिपाही के स्वीकृत हैं। इनमें से 25318 पद रिक्त हैं। हरियाणा राज्य की अनुमानित आबादी ढाई करोड़ से अधिक है। इतनी बड़ी आबादी की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिस तरह पुलिस विभाग ने उठा रखी है, वह काबिले तारीफ है। प्रदेश के कुछ इलाके बहुत संवेदनशील माने जाते हैं। जैसे मेवात का इलाका। पुलिस विभाग में एक तिहाई पद रिक्त होने के चलते लोगों की सुरक्षा करने और अराजक तत्वों पर अंकुश लगाने में बहुत परेशानी होती है।
निकट भविष्य में होने वाली छह हजार पदों की भर्ती के बाद भी लगभग बीस हजार पद रिक्त रह जाएंगे। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह जल्दी से जल्दी अन्य पदों पर भर्ती करके राज्य की सुरक्षा और शांति को कायम रखने की कोशिश करे। वैसे भी प्रदेश में अपराध दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं। साइबर ठगी से लेकर महिलाओं के साथ होने वाले अपराध भी हो रहे हैं। हत्या, खुदकुशी जैसे मामले तो आए दिन सामने आते रहते हैं। यदि इन्हीं पर पुलिस कर्मचारी लगाम लगाने की कोशिश करें, तो शायद उतनी दिक्कत न हो, लेकिन मंत्रियों, विधायकों, सांसदों सहित तमाम वीआईपीज की सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मी जनता के हित में शायद ही कोई काम कर पाते हों। यह सही है कि इन लोगों की सुरक्षा बहुत जरूरी है, लेकिन आम जनता की सुरक्षा को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।
-संजय मग्गू