हम समाज में रहते हैं। समाज के प्रति हमारे कुछ कर्तव्य हैं। हमें उन कर्तव्यों का निर्वाह करना चाहिए। यह बात सभी जानते हैं और समझते हैं, लेकिन हम में से ज्यादातर लोग इसका पालन नहीं करते हैं। सड़क किनारे पड़े पत्थरों को भी हम या तो नजरअंदाज करके आगे बढ़ जाते हैं या फिर उस अज्ञात व्यक्ति को गाली देते हैं जिसने बीच सड़क पर पत्थर रखा है। हम उसे उठाकर किनारे करने की जहमत नहीं उठाते हैं। इस संबंध में एक छोटी सी कहानी है।
एक राजा ने अपने राजमहल के सामने की सड़क पर एक बड़ा सा पत्थर रख दिया और पास की झाड़ियों में छिपकर देखने लगा। सुबह का समय था। लोगों का आना-जाना शुरू हुआ। लोगों ने सड़क किनारे पड़े पत्थर को देखा, तो कुछ लोगों ने राजा को कोसा और आगे बढ़ गए। कुछ लोगों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और उसके बगल से गुजर गए। सुबह से दोपहर हो गई, किसी ने भी उस पत्थर को किनारे करने की जरूरत नहीं समझी। दोपहर में उधर से एक किसान अपनी बैलगाड़ी लेकर गुजरा। उसकी बैलगाड़ी पर अनाज लदा हुआ था।
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वह चाहता तो बगल से बैलगाड़ी निकाल कर जा सकता था, लेकिन उसने आगे जाकर बैलगाड़ी रोकी और आकर पत्थर को ढकेल कर किनारे करने लगा। पत्थर बहुत भारी था, लेकिन काफी देर की मेहनत के बाद वह उस भारी पत्थर को ढकेलकर किनारे करने में सफल हो गया। पत्थर को ढकेलने के बाद जब वह हाथ झाड़कर जहां पत्थर रखा था उस ओर देखा,तो उसे एक थैली दिखाई दी। उस थैली में सोने के सिक्के थे। इन सिक्कों के साथ थैली में एक पत्र था जिसमें लिखा था,यह तुम्हारी मेहनत का पुरस्कार है। यह देखकर किसान काफी खुश हुआ। उसकी गरीबी उन सिक्कों की बदौलत दूर हो गई थी। वह खुश होकर अनाज मंडी की ओर चल पड़ा।
-अशोक मिश्र
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