एक सत्यकथा पिछली शताब्दी की है जो देश के लगभग प्रत्येक व्यक्ति को मालूम है। त्सूट-टाई पहने, कानून में दीक्षित एक नौजवान को दक्षिण अफ्रीका के अंग्रेजी उपनिवेश की ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था, क्योंकि वह उस तीसरे दर्जे के डिब्बे, जिसमें उस जैसे अश्वेतों से यात्रा करने की अपेक्षा की जाती थी, में बैठने के बजाय प्रथम श्रेणी के डब्बे में बैठने की जिद कर रहा था। उनका नाम था मोहनदास करमचंद गांधी। संयोग देखिए, उन जैसे अंग्रजों को भारतवर्ष से निकालने का काम मोहनदास करमचंद गांधी के ही नेतृत्व में संपन्न हुआ। यह ठीक है कि देश में गरम दल और नरम दल बन गए थे। गरम दल की अगुवाई सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में हो रहा था, लेकिन नरम दल का नेतृत्व मोहनदास करमचंद गांधी कर रहे थे। लेकिन, सच तो यह है कि गरम दल के नेता सुभाष चंद्र बोस भी गांधीजी के परम अनुयायी थे। सुभाष बाबू का कहना था कि एक लाख व्यक्ति हम करोड़ों भारतीयों पर कैसे राज्य कर सकता है? मतभेद तो सुभाष बाबू और गांधीजी में यही तो था।
इस बार संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के उपरांत प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा, वह निश्चित रूप से उनके आत्मविशास के साथ अहंकार से भी भरा था। प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर करारा आक्रमण करते हुए कहा कि लगता है विपक्ष ने लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहने का संकल्प ले लिया है। उन्होंने विपक्षियों से अहंकारपूर्वक दावा करते हुए कहा कि विपक्ष अगले चुनाव के बाद दर्शकदीर्घा में बैठे दिखाई देंगे। वंशवाद पर कहा एक प्रोडक्ट (राहुल गांधी) को बार बार लॉन्च करने की कोशिश में न सिर्फ कांग्रेस की दुकान पर ताला लगाने की स्थिति आ गई है, बल्कि विपक्षी गठबंधन का अलाइनमेंट ही टूट गया है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ठीक कहते थे कि सत्ता का खेल तो चलता रहेगा, सरकारें आएंगी—जाएंगी, पार्टियां बनेंगी—बिगड़ेंगी, पर यह देश चलते रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र कायम रहना चाहिए। लेकिन, आज राजनीति और राजनीतिज्ञों की जो स्थिति हो गई है, उसमें क्या ऐसा कुछ हो रहा है?
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आज सत्तारूढ़ दल यही मानता है कि विपक्ष का अर्थ केवल मात्र राहुल गांधी ही हैं, इसलिए सारा आरोप—प्रत्यारोप उनके ही नाम से लगाया जाता है अथवा हिंदू-मुसलमान के नाम पर होता है। फिर सत्तारूढ़ दल का यह भी कहना कि राहुल गांधी को कांग्रेस बार—बार लॉन्च क्यों करती है। सच तो है कि यह उनका अंदरूनी मामला है, लेकिन प्रश्न यह है कि यदि राहुल गांधी विपक्ष की राजनीति करने में फेल रहे हैं, तो फिर राहुल गांधी से सत्तारूढ़ को इतना डर किस बात का है कि अभी कांग्रेस द्वारा आयोजित ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में इतनी भीड़ क्यों उमड़ रही है?
असम में राहुल गांधी के प्रति इतना डरावना बयान मुख्यमंत्री ने क्यों दिया और न्याय यात्रा को क्यों बाधित किया गया। इसका सीधा उत्तर है कि विपक्ष और विशेष रूप से राहुल गांधी ने असम के मुख्यमंत्री पर जो भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, वे सही थे? यदि ऐसा नहीं था तो भाजपा ने पहले उनके प्रति इतनी बेरुखी से जो आरोप लगाया था, वह निराधार था अथवा सत्तारूढ़ दल में शामिल होने पर मुख्यमंत्री बनाना पुरस्कार था? आखिर सत्तारूढ़ के लिए राहुल गांधी इतने महत्वपूर्ण क्यों हो गए, जवाहरलाल नेहरू के लिए सत्तारूढ़ दल इतनी अपमानजनक बातें क्यों करता है? राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भारतीय को आलसी और कम बुद्धिमान मानते थे। सांसद गौरव गोगोई ने इसका खंडन करते हुए विरोध जताया। गूगल ने बताया है कि सच में पं. जवाहरलाल नेहरू ने क्या कहा था। कुल मिलाकर विपक्ष ने प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए भाषण को अहंकारपूर्ण बताया है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-निशिकांत ठाकुर
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