–कविता
शहर के बादशाह खान सिविल अस्पताल की तरफ जाने वाली सड़क पर अंधेरा होने से मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ता था। ऐसे में यहां अनहोनी की संभावनाएं थी। क्योंकि अस्पताल में पलवल, होडल, हथीन, बदरपुर बॉर्डर, नूंह और सोहना तक के मरीज इलाज को आते हैं। इस समस्या को देश रोजाना ने शुक्रवार के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित किया था। खबर में लिखा था कि नगर निगम मुख्यालय के सामने तीन बड़ी स्ट्रीट लाइटों में से एक भी लाइट जलती नहीं है। हालांकि इस विषय में एम्बुलेंस चालकों ने पिछले छह माह में कई शिकायते की थी। लेकिन इसके बावजूद भी निगम इन बंद लाईटों को ठीक नहीं करवा पाया था।
लेकिन जब देश रोजाना ने इसे शुक्रवार को प्रमुखता से प्रकाशित किया तो नगर निगम ने संज्ञान लेते हुए इन बंद लाईटों को चालू करवा दिया। दोनों सड़कों की लाईटे चालू तो कर दी गई। लेकिन निगम ठेकेदार की लापरवाही यहां भी समाप्त नहीं हुई। मरम्मत के बाद दिन में लाइटों को जलता छोड़ दिया। जो लाइटें छह माह से नहीं जल रही थी, वह अब पूरे दिन जलती रही।
स्ट्रीट लाइटों की मरम्मत:
बीके चौक और मेट्रो मोड़ से बादशाह खान सिविल अस्पताल के लिए दो रास्ते आते हैं। इन दोनों रास्तों पर लाइटें तो लगी हैं, लेकिन छह माह से नहीं जल रही थी। जिसे देखते हुए देश रोजाना ने ‘निगम मुख्यालय ही अंधेरे में तो शहर का क्या होगा? ’शीर्षक से खबर प्रमुखता से प्रकाशित की। जिस पर नगर निगम ने खबर छपते ही लाइटों को ठीक करवा दिया। लेकिन निगम ठेकेदार के कर्मचारी ठीक करने के बाद लाइटों को पूरे दिन जलता हुआ छोड़ गए। मरम्मत के बाद उन्हें बंद करना भूल गए। जिसके कारण यहां दिनभर बिजली व्यर्थ में खर्च होती रही। यहां से गुजरने वाले निगम अधिकारियों ने भी इन पर ध्यान नहीं दिया।
खबर का असर:
समाजसेवी रविन्द्र चावला ने कहा कि देश रोजाना की खबर का असर हो गया है। बीके अस्पताल रोड की छह माह से बंद लाइटें खबर लिखते ही ठीक करवा दी गई। लेकिन इससे निगम अधिकारियों की लापरवाही भी उजागर हुई है। उन्हें यह बंद लाईटे अपने दफ्तर के बाहर नजर ही नहीं आई। जोकि पिछले छह माह से बंद थी। क्या जब तक खबरों के माध्यम से बताया नहीं जाएगा, तब तक निगम शिकायतों का निपटारा नहीं करेगा?