महात्मा गांधी ने हमेशा प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग करने की बात कही है। वे जितना जरूरी होता था, उतना ही उपयोग करते थे। उन्होंने लोगों को सत्य और अहिंसा की प्रेरणा दी। इसके अलावा उन्होंने सादा जीवन जीने की तरफदारी हमेशा की। जब लंदन से लौटने के बाद उन्होंने भारत में गरीबी देखी, तो उन्होंने सूट-बूट पहना छोड़ दिया और मारकीन की एक धोती को आधा पहनना और आधा ओढ़ लेना सीख लिया।
वह उपयोगी वस्तुओं को व्यर्थ फेंकने के सबसे बड़े विरोधी थे। एक बार की बात है। गांधी जी को किसी काम के लिए नीम की कुछ पत्तियों की जरूरत हुई। उन्होंने आश्रम में रहने वाले एक युवक से कहा कि जरा बाहर जाकर नीम की तीन-चार पत्तियां ले आओ। गांधी जी की बात सुनकर युवक बहुत प्रसन्न हुआ। वह अपने को सौभाग्यशाली मानने लगा कि गांधी जी ने उसे कोई काम करने को कहा। वह उत्साहित होकर बाहर गया और थोड़ी देर बाद नीम की एक टहनी तोड़कर ले आया। उसने टहनी को गांधी जी के हाथ में देते हुए कहा कि मैं नीम की टहनी ले आया हूं।
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आप इसमें से जितना चाहें, उतनी पत्ती का उपयोग कर सकते हैं। गांधी जी उस युवक के हाथ में नीम की टहनी को देखते ही काफी विचलित हो गए। उन्होंने कहा कि अब मैं इसका उपयोग नहीं कर पाऊंगा। मैंने तुम्हें तीन-चार पत्ती लाने को कहा था, तुम टहनी क्यों ले आए। मैं तीन-चार पत्ती ले लूंगा, लेकिन बाकी पत्तियां तो बेकार हो जाएंगे। इन्हें फेंकना पड़ेगा। गांधी जी ने युवक को समझाते हुए कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का सोच समझकर उपयोग करना चाहिए। इसका सदुपयोग करके ही हम प्रकृति को बचा सकते हैं। यह बात युवक की समझ में आ गई।
-अशोक मिश्र
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