इन दिनों जापान के सामने कई तरह की दिक्कतें आ खड़ी हुई हैं। उसके सामने सबसे बड़ी समस्या बुजुर्ग होती आबादी की है। परिवार नियोजन और ज्यादा उम्र होने पर विवाह या बच्चे पैदा करने की प्रवृत्ति के चलते वहां युवाओं की कमी हो गई है। नतीजा यह हुआ कि जापान में कारखानों, कार्यालयों और अन्य क्षेत्रों में कामगारों की भारी कमी हो गई है। हालांकि, ठीक इसी तरह की समस्या से चीन भी जूझ रहा है। कुछ सालों बाद हमारा देश भी इसी समस्या से जूझेगा क्योंकि आज का युवा भारत आने वाले कुछ दशक बाद बुजुर्ग भारत में तब्दील हो जाएगा।
हमारे देश में भी काफी उम्र के बाद युवा शादी कर रहे हैं या बच्चे पैदा करने की सोच रहे हैं। तब हमारे देश की इकोनॉमी के भी सिकुड़ने की आशंका है। इस स्थिति से बचने के लिए अभी से भारत को तैयारी करनी होगी। जापान के सामने दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसकी अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है। अर्थव्यवस्था के सिकुड़ने का कारण भी बुजुर्गों की बढ़ती आबादी और कामगारों की कमी से ही जुड़ा हुआ है। यानी एक समस्या दूसरी समस्या की जनक है। नतीजा यह हुआ है कि जापान आर्थिक मंदी का शिकार हो गया है।
जापान की जीडीपी ग्रोथ रेट लगातार दूसरी तिमाही निगेटिव रही है। साल 2023 के आखिरी तिमाही में जीडीपी माइनस 0.4 रही, जबकि इससे पहले की तिमाही में माइनस 3.3 रही थी। इसका लाभ जर्मनी को मिला और वह टॉप फाइव इकोनॉमी की लिस्ट में तीसरे नंबर पर पहुंच गया और जापान खिसक कर चौथे नंबर पर आ गया। यही नहीं, वर्ष 2010 तक दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था वाला जापान चीन से मात खा गया।
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जैसे-जैसे चीन की अर्थव्यवस्था मजबूत होती गई, वह पिछड़ता गया और पहले दो नंबर से पिछड़कर तीसरे और अब तीसरे से पिछड़कर चौथे नंबर पर आ गया है। जर्मनी की अर्थव्यवस्था 4.55 ट्रिलियन डॉलर की है। वहीं जापान 4.23 से गिरकर 4.19 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गई है। बैंक आफ जापान का कहना है कि वर्ष 2026 तक जापान की यही स्थिति रह सकती है। यह भी सच है कि जब किसी देश की इकोनॉमी गिरती है, तब इसका फायदा किसी न किसी देश को जरूर मिलता है। भारत को भी जापान के पिछड़ने का फायदा मिला और वह वर्ष 2022 में 3389 अरब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था अब चार अरब डॉलर की हो गई है।
हालांकि पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तक पहुंचने के लिए भारत को बहुत कुछ करना होगा, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। पिछले ही साल भारत ने ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवां स्थान हासिल किया है। ब्रिटेन भी इन दिनों आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। वर्ष 2023 की आखिरी तिमाही में उसकी जीड़ीपी ग्रोथ रेट माइनस 0.3 रही, जबकि जुलाई वाली तिमाही में यह माइनस 0.1 थी। आर्थिक मंदी से निपटने के लिए ब्रिटेन का बैंक आफ इंग्लैंड ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। इस मामले में भारत को भी सतर्क रहना होगा।
-संजय मग्गू
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