कई दशक पहले एक फिल्म आई थी-अमर प्रेम। इसका एक गाना बहुत मशहूर हुआ था-कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। हर समाज में अदृश्य रूप से छिपे बैठे ये ‘लोग’ किसी का भी जीना हराम कर देते हैं। कई बार तो इंसान पर लोगों का इतना ज्यादा दबाव होता है कि वह हताश होकर आत्मघात कर लेता है। किसी को किसी दूसरी जाति या धर्म के लड़के या लड़की से प्रेम हो गया। मां-बाप शादी करने से मना कर देते हैं कि लोग क्या कहेंगे। आपको अपनी मंगेतर के साथ लंच पर जाना है, लेकिन घर वाले मना कर देते है कि लोग क्या कहेंगे। ये लोग जीवन के हर क्षेत्र में पाए जाते हैं। बहुत सारे लोग तो अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में इसलिए नहीं डालते हैं कि लोग क्या कहेंगे।
इस चक्कर में अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा पैसा खर्च करके बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं। जब तक बच्चे की पढ़ाई चलती रहती है, तब तक वे तमाम तरह की कठिनाइयां झेलते हैं, अपनी इच्छाओं का गला घोटते हैं। इससे जब उबर पाते हैं, तो पता चलता है कि जीवन का स्वर्णिम काल तो ‘लोग क्या कहेंगे’ के चक्कर में खप गया। अंतर जातीय या अंतरधार्मिक विवाह तो 95 प्रतिशत इसीलिए नहीं हो पाते हैं कि लोग क्या कहेंगे। ये लोग कोई नहीं हैं। हमारे मन के किसी कोने में छिपा बैठा एक अदृश्य भय है जिससे हम जीवन भर भयाक्रांत रहते हैं। माना कि हमने अपनी मनमर्जी से कोई ऐसा काम कर लिया जो समाज या देश विरोधी नहीं है, लेकिन समाज इसे अच्छा नहीं मानता है, तो लोग कितने दिन कहेंगे? एक दिन, दो दिन, चार दिन। फिर…? लोग चुप हो जाएंगे।
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हम लोगों की जितनी चिंता करेंगे, लोग हमें उतना ही कहेंगे। जिस दिन हमने लोगों के बारे में सोचना बंद कर दिया, हम परम स्वतंत्र हो जाएंगे। अकसर देखने में आता है कि लोग खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने के मामले में दूसरों का बहुत ध्यान रखते हैं। किसी को कुर्ता-पायजामा या पैंट के साथ टीशर्ट पहनना पसंद है। वह इन कपड़ों में अच्छा महसूस करता है। ऐसे में किसी पार्टी या समारोह में जाना है, तो वह कुर्ता-पायजामा या पैंट के साथ टीशर्ट पहनकर नहीं जाएगा। लोग क्या कहेंगे? अगर खुश रहना है, जीवन में सारी खुशियां पानी है, तो हमें लोग क्या कहेंगे ग्रंथि से मुक्ति पानी होगी।
बिंदास रहिए, बिंदास जीवन बिताइए। यदि आपका मन है, तो सड़क पर खड़े होकर जोर-जोर से गाइए। कोई आपका क्या बिगाड़ लेगा। आपको लगता है कि नाचने का मन हो रहा है, तो लगाइए ठुमके। जी भरकर नाचिए, जब तक आप थक न जाएं। ऐसे में लोग आपको पागल ही समझेंगे न! समझने दीजिए। जिस काम में आपको खुशी मिलती है, उसे करने में कभी हिचकना नहीं चाहिए। सुख हो या दुख, भोगना आपको है, इसमें किसी दूसरे का दखल क्यों हो? जीवन आपका है, इसे आप कैसे बिताते हैं, यह आपका हक है। इसे कोई नहीं छीन सकता है, हरगिज नहीं। न मां-बाप, न सरकार और न ही कोई अदालत।
-संजय मग्गू
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