मणिपुर हाईकोर्ट ने 23 मार्च 2023 को दिया गया अपना फैसला वापस ले लिया है। हाईकोर्ट ने माना कि उसका फैसला संवैधानिक बेंच के खिलाफ था। 23 मार्च 2023 को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह चाहे तो मैतोई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने पर विचार कर सकती है। वह केंद्र सरकार के पास अपना प्रस्ताव भेज सकती है। इसके बाद ही मणिपुर में तनाव पैदा हो गया था।
3 मई को जब आल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन आफ मणिपुर ने आदिवासी एकता मार्च निकाला, तो चुराचांदपुर में हिंसा भड़क गई। 3 मई को भड़की हिंसा की आग आज शांत नहीं हुई है। हिंसक घटनाएं आज भी होती रहती हैं। अब तक डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। मणिपुर की इस हिंसा ने पूरे देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदा करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। मैतोई, कुकी और नगा समुदाय की महिलाओं के साथ न केवल बलात्कार किया गया, बल्कि उन्हें सड़कों पर नंगा घुमाया गया। हालात कितने बदतर थे कि मैतोई समुदाय को मौका मिलता था, तो वे कुकी और नगा समुदाय की महिलाओं के साथ बलात्कार करते थे। जब नगा और कुकी की पकड़ में मैतोई महिलाएं आती थीं, तो वे भी मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं को अंजाम देते थे।
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मणिपुर के माथे पर लगा कलंक शायद ही धुल पाए। मैतोई समुदाय के लोग कुकी या नगा बहुल इलाके में जाने से कतराते थे और यही हाल नगा और कुकी समुदाय का मैतोई बहुल इलाके में जाने का था। मणिपुर में न जाने कितने मकान जला दिए गए, अरबों रुपये की संपत्ति नष्ट कर दी गई। इन हिंसक घटनाओं का दुष्प्रभाव यह हुआ कि मणिपुर राइफल्स के पुलिस कर्मी तक समुदाय के आधार बंट गए थे।
मणिपुर राइफल्स पर भी समुदाय के आधार पर भेदभाव करने के आरोप तक लगे थे। मणिपुर में भड़की हिंसा का मूल कारण बहुत पहले से ही विद्यमान थे। बस, मणिपुर हाईकोर्ट ने दबी चिनगारी को हवा दे दी थी। मणिपुर की पूरी आबादी में 57 फीसदी मैतोई हैं। मणिपुर की लगभग 38 लाख आबादी में से 43 प्रतिशत में कुकी और नगा आते हैं। नगा और कुकी अपने को मणिपुर का मूल निवासी मानते हैं। ये दोनों जनजातियां ईसाई धर्मावलंबी मानी जाती हैं।
मैतोई हिंदू हैं और उनका दावा है कि दसियों साल पहले हमारे राजाओं ने कुकी समुदाय को युद्ध लड़ने के लिए म्यांमार से बुलाया था। बाद में ये यहीं बस गए। जब मणिपुर में अंग्रेजों का शासन कायम हुई, तो ये ईसाई हो गए। हिंदू और ईसाई का झगड़ा मणिपुर ही नहीं, आसपास के राज्यों में काफी समय से चल रहा था। अब जब मणिपुर हाईकोर्ट ने अपने पुराने फैसले को बदल दिया है, ऐसे में यह उम्मीद की जानी चाहिए कि मणिपुर में भड़की हिंसा की आग ठंडी पड़ जाएगी। लेकिन इन दोनों समुदायों के बीच जो दरार आई है, उसको भरने में समय लगेगा। स्थानीय प्रशासन को भी अब बिना किसी भेदभाव के राहत और पुनर्वास की प्रक्रिया को तेज करना होगा।
-संजय मग्गू
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