महात्मा बुद्ध ने समाज में फैलेअज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने के लिए ही कहा था-अप्प दीपो भव। यानी अपना प्रकाश खुद बनो। किसी दूसरे के भरोसे बैठकर दुख भोगने से बेहतर है कि तुम खुद इतना प्रयास करो कि लोग तुम्हें नायक समझने लगें। तुम्हें अपनी समस्याओं का समाधान खुद खोजना होगा, कोई अवतार नहीं आएगा। इस तरह सरल उपदेश देने वाले महात्मा बुद्ध एक बार हाथ में एक रस्सी लेकर आए और प्रवचन देने की जगह पर बैठ गए। उन्होंने लोगों के सामने रस्सी में तीन गांठें लगाई और पूछा कि क्या यह वही रस्सी है जो गांठ लगाने से पहले थी।
एक शिष्य ने कहा कि वैसे यह हमारे देखने के नजरिये पर निर्भर करता है। वैसे रस्सी तो वही है, लेकिन गांठ लगाने से आकार बदल गया है। बुद्ध ने कहा कि सही बात है। इसके बाद वे रस्सी के दोनों छोर को पकड़कर खींचने लगे। अब उन्होंने लोगों से पूछा कि अब यदि इसकी गांठ खोलनी हो तो क्या इसके सिरे को पकड़कर खींचना होगा। एक दूसरे शिष्य ने उठकर कहा कि दोनों सिरों को पकड़कर खींचने से गांठें और कस जाएगी। इससे खोलना कठिन हो जाएगा। हमें इन गांठों को ध्यान से देखना होगा, तब खोलने का प्रयास करना होगा। तब बुद्ध ने कहा कि बिल्कुल सही उत्तर है।
यह भी पढ़ें : याददाश्त दुरुस्त रखनी है, तो जोर-जोर से पढ़ो
यदि हमें इसे खोलना हो, तो क्या करना होगा। एक तीसरे शिष्य ने विनम्र भाव से उत्तर दिया कि हमें इन गांठों को गौर से देखकर यह पता लगाना होगा कि यह लगी कैसे हैं? इसके बाद गांठ खोलने का प्रयास करना होगा। इस पर महात्मा बुद्ध ने कहा कि जीवन में आने वाली समस्याओं को सुलझाने का यही तरीका है। पहले समस्या की जड़ क्या है, इसको तलाश करो। बिना कारण जाने किसी भी समस्या का समाधान कर पाना संभव नहीं है। यह सुनकर शिष्य संतुष्ट हो गए।
–अशोक मिश्र
लेटेस्ट खबरों के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/