महाराष्ट्र के संतों में स्वामी रामतीर्थ का स्थान काफी ऊंचा है। संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, संत नामदेव आदि संतों ने भी स्वामी रामतीर्थ की तरह सबसे मिल जुलकर रहने, ईर्ष्या त्यागने और सत्चरित्र रहने की प्रेरणा दी। इन सभी संतों ने अपनी रचनाओं, उपदेशों और वाणियों से लोगों को स्वस्थ रहने, सदाचार के साथ जीवन बिताने की शिक्षा दी। स्वामी रामतीर्थ ने अपनी शिक्षा-दीक्षा से छत्रपति शिवाजी को एक न्यायप्रिय शासक और अपनी प्रजा का ध्यान रखने वाला बनाया। स्वामी जी ने हमेशा यही शिक्षा दी कि स्त्री का सम्मान करो। भले ही वह शत्रु पक्ष की हो। कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी ने हमेशा उनकी इस शिक्षा को ध्यान में रखा और जीवन में उतारा। उन्होंने ही शिवाजी से कहा कि तुम भी राम की तरह न्याय और धर्म की रक्षा के लिए सतत संघर्षशील बने रहो।
उन्होंने कभी किसी दूसरे मत या धर्म के मानने वालों को अपने से कमतर नहीं समझा। उन्होंने हमेशा दूसरे धर्मों और संप्रदायों को सम्मान दिया। वह राम और कृष्ण में भेद नहीं करते थे। कहा जाता है कि एक बार उन्होंने कहा था कि विठोबा ही हमारे भगवान राम हैं। महाराष्ट्र में श्री कृष्ण को विठोबा या बिट्ठल कृष्ण के नाम से पुकारा जाता है। वे महाराष्ट्र के पंढरपुर को अयोध्या के रूप में मानते थे।
उन्होंने मराठी में कहा था जिसका भावार्थ यह है कि यहां पंढरपुर में मेघवर्ण के सांवले विठोबा कृष्ण ही मेरे राम हैं। रखुबाई (रुक्मिणी) ही मेरी सीता माता हैं। ऐसी स्थिति में मैं अयोध्या जाने की जरूरत नहीं महसूस करता हूं। मैं यहीं पंढरपुर को अयोध्या मानकर निवास करूंगा और चंद्रभागा नदी में स्नान करके अपने को धन्य मानूंगा। स्वामी रामतीर्थ ने आजीवन दोनों आराध्य की पूजा की।
अशोक मिश्र