इन दिनों मीडिया के सभी मंचों पर पश्चिम बंगाल का संदेशखाली छाया हुआ है। सुबह से देर रात तक संदेशखाली की ही गूंज सुनाई दे रही है। कभी भाजपा नेताओं की टीम संदेशखाली जा रही है, तो कभी महिलाओं का दल। हमेशा चुनावी मोड में रहने वाले पीएम नरेंद्र मोदी भी संदेशखाली की पीड़ित महिलाओं से मिलने से मिलने का लोभ संवरण नहीं पाए। लेकिन मणिपुर की घटना के समय पीएम काफी दिनों तक जिस तरह चुप्पी साधे रहे, वह आज भी आश्चर्यचकित करता है। सवाल यह है कि संदेशखाली के मामले को भाजपा से लेकर मीडिया तक इतना तूल क्यों दे रहा है। इसके पीछे चुनावी समीकरण साधने की मंशा तो नहीं है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में जो कुछ हुआ, वह बहुत ही घृणित और पाप कर्म था।
शाहजहां शेख और उसके साथियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने महिलाओं से दुराचार, जमीन पर अवैध कब्जा जैसे न जाने कितने अपराध किए हैं। हर एक अपराध की सजा अवश्य मिलनी चाहिए। जिस तरह शाहजहां शेख और उसके साथियों को बचाने का प्रयास ममता सरकार ने किया, वह भी निंदनीय है। अब जब मामला सीबीआई के हाथ में पहुंच गया है, तो अभी बहुत सारे राज बाहर आएंगे। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि जिस तरह की तत्परता, जोश, जुनून संदेशखाली को लेकर भाजपा और केंद्र सरकार दिखा रही है, वह जोश, जुनून और तत्परता तब कहां गायब हो गई थी, जब मणिपुर में हिंसा का नंगा नाच खेला जा रहा था। महिलाओं को सरेआम नंगा करके सड़कों पर घुमाया जा रहा था। महिलाओं की इज्जत तार-तार की जा रही थी।
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सारा जोश, जुनून, तत्परता और महिलाओं के प्रति सम्मान दिखाने की ललक शायद इसलिए उबाल नहीं मार पाई थी क्योंकि मणिपुर में अपनी सरकार थी। जब भी किसी गैर भाजपा या गैर एनडीए शासित प्रदेश में हत्या, बलात्कार या अन्य किसी तरह का अपराध होता है, तो मामले को इतना तूल देने का प्रयास किया जाता है, मानो इससे बुरा कुछ भी नहीं है। 18 सितंबर 2022 को उत्तराखंड के पौड़ी की अंकिता भंडारी को न्याय दिलाने में पुलिस ने उतनी तत्परता नहीं दिखाई जितनी इस मामले को अपने वेबसाइट के लिए कवर कर रहे पत्रकार आशुतोष नेगी को गिरफ्तार करने में दिखाई गई थी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कथित हत्यारा पुलकित आर्य भाजपा के वरिष्ठ नेता विनोद आर्य का पुत्र है।
यह सच है कि महिलाओं के साथ लगभग सभी प्रदेशों में कुछ न कुछ ऐसा घटित हो रहा है, जो निंदनीय है, घृणास्पद है, आपराधिक है। समाज में हिंसा बढ़ रही है, महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ रहे हैं और यह सब कुछ जहां भी हो रहा है, जो भी कर रहा है, वह निंदनीय है, आरोपी कठोरतम सजा के हकदार हैं। इस मामले में शासन-प्रशासन को अपने-पराये का भेद भुलाकर जल्दी से जल्दी पीड़ित को न्याय दिलाने की कोशिश करनी चाहिए। यही राजधर्म है। राजधर्म में कोई अपना पराया नहीं होता है। राजधर्म हानि-लाभ भी नहीं देखता है। ममता सरकार को जिस तत्परता के साथ कार्रवाई करनी चाहिए थी, उसमें वह चूक गई जिसके कारण जग हंसाई तो हुई ही, भाजपा को भी एक मुद्दा मिल गया उसके खिलाफ वातावरण बनाने का।
-संजय मग्गू
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