बाबा फरीद का नाम सूफी संतों और कवियों में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। सिखों के पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में भी इनकी रचनाओं को बड़े सम्मान के साथ शामिल किया गया है। इनका जन्म पंजाब के मुल्तान में कोठेवाली गांव में 1173 ईस्वी में हुआ था। इनका पूरा नाम फरीद्दुद्दीन गजशंकर बताया जाता है। इनके नाम के साथ गजशंकर कैसे जुड़ा, यह शोध का विषय है। एक बार की बात है। एक व्यक्ति बाबा फरीद के पास आया और बोला, मैंने अपने जीवन में काफी बुरे काम किए हैं। मुझे कहीं भी चैन नहीं मिलता है। मैं चाहते हुए भी अपने बुरे कामों से दूर नहीं रह पा रहा हूं। यदि आप कोई मार्ग बताएं, तो बेहतर है।
बाबा फरीद ने कहा कि दृढ़ संकल्प से ही व्यक्ति अपने बुरे कामों से, दुर्गुणों से निजात पा सकता है। यदि तुम ऐसा करो, तो अच्छा है। इसके बाद उस व्यक्ति ने काफी प्रयास किया, लेकिन जब वह सफल नहीं हो पाया तो फिर वह बाबा फरीद के पास पहुंचा। उसने एक बार फिर अपनी समस्या बताई। बाबा ने कहा कि अरे, तुम्हारी तो सिर्फ चालीस दिन की जिंदगी बची है। अब तो प्रभु का नाम जपो। शायद तुम्हें सद्गति मिल जाए। यह सुनकर वह व्यक्ति उदास होकर घर चला गया। अब उसे चौबीस घंटे अपने प्राणों का भय लगा रहता था।
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वह बुरे काम करना तो भूल ही गया। किसी तरह चालीसवां दिन आ पहुंचा। उसने बाबा फरीद से मिलने की सोची और वहां पहुंच गया। बाबा फरीद ने पूछा कि तुमने इस दौरान कितने बुरे काम किए। उस आदमी ने कहा कि कहां मैं तो अपनी मौत को याद करके भगवान को याद करता रहा। बुरे काम करने का मौका ही नहीं मिला। तब बाबा ने कहा कि अब तुम्हारी मौत टल गई है। ऐसे ही जीवन भर रहना।
-अशोक मिश्र
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