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क्षेत्रीय दलों के सामने अपना अस्तित्व बचाने का संकट

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सन् 2019 के विधानसभा चुनाव में दस सीटें जीतकर भाजपा के साथ सरकार बनाने वाली जजपा यानी जननायक जनता पार्टी इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही है। कुछ महीने पहले भाजपा गठबंधन से अलग हुई जजपा अब लोकसभा चुनावों में दसों सीटों पर अपने प्रत्याशियों को उतारकर भाजपा और कांग्रेस को पछाड़ने का मनसूबा पाले हुए है। राज्य सरकार में किंग मेकर की भूमिका निभाने वाली जजपा की हालत इन दिनों काफी कमजोर दिखाई दे रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि जजपा को दसों सीटों के लिए उपयुक्त उम्मीदवार तक नहीं मिल रहे हैं। सच तो यह है कि हरियाणा में क्षेत्रीय दलों का राष्ट्रीय दलों के मुकाबले कोई खास वजूद रहा भी नहीं है। इनकी भूमिका बस कभी त्रिशंकु सरकार बनने की स्थिति में सरकार बनाने वाली पार्टी के साथ मिलकर लंगड़ी सरकार को एक टांग बनने जैसी रही है।

सन् 1977 में राव बीरेंद्र सिंह के नेतृत्व में बनने वाली विशाल हरियाणा पार्टी को उस साल चुनाव में सिर्फ एक सीट पर ही सफलता मिली। कांग्रेस से बगावत करने वाले चौधरी देवी लाल ने सन 1982 में लोकदल की स्थापना की थी। लोकदल के गठन के पांच साल बाद जब हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए तो कुल 90 में से 60 सीटें जीतकर लोकदल ने सरकार बनाई। हरियाणा की राजनीति में इनेलो, जजपा, हजकां, हविपा, एकता शक्ति पार्टी जैसी तमाम राजनीतिक दलों को कोई महत्वपूर्ण सफलता हासिल नहीं हो सकीं। इन क्षेत्रीय दलों का कुछ क्षेत्रों में प्रभाव जरूर रहा, लेकिन पूरे प्रदेश की आम जनता को प्रभावित कर सकें, इतना बड़ा जनाधार कभी किसी क्षेत्रीय पार्टी का नहीं रहा।

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लोगों को इन दलों पर विश्वास इसलिए भी कायम नहीं हुआ क्योंकि उन्हें इनके भविष्य पर भरोसा नहीं था। ये क्षेत्रीय दल आज बने हैं, कल किसी बड़ी पार्टी में इनका विलय नहीं हो जाएगा, इसकी कोई गारंटी भी नहीं थी। दरअसल, इसका कारण यह माना जाता है कि लोगों का इन दलों के कार्यक्रम और नेतृत्व पर विश्वास नहीं जम पाता है। कम संसाधन और कार्यकर्ताओं की कमी के चलते जनता पर अपना उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाते हैं जितने प्रभाव की दरकार होती है।

राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों के पास संसाधन और कार्यकर्ताओं की बहुलता के साथ-साथ उनका एक स्पष्ट रोडमैप होता है कि वे प्रदेश के लिए क्या करने वाले हैं। यदि उनकी सरकार बनी, तो उनकी जनकल्याण के लिए कौन-कौन सी योजनाएं हैं जिसको वे लागू करेंगे। राष्ट्रीय स्तर के दलों के कार्यकर्ता हर मोहल्ले और गांव तक अपनी पहुंच रखते हैं। वे साल भर लोगों के संपर्क में रहते हैं। क्षेत्रीय दलों को यह सुविधा इसलिए हासिल नहीं होती है क्योंकि उनके कार्यकर्ता सीमित होते हैं।

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

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