सड़क पर किसी भी काम के लिए निकलने वाला बच्चा प्रदेश का सबसे असुरक्षित प्राणी है। महेंद्रगढ़ के कनीना में पिछले दिनों हुए हादसे के बाद से स्कूली बच्चों के परिजन आशंकित रहने लगे हैं। प्रदेश में सड़क हादसे लगातार बढ़ते जा रहे हैं, वहीं प्रदेश सरकार का कहना है कि पिछले साल के मुकाबले में सड़क हादसों में आठ फीसदी की कमी आई है, वहीं सड़क हादसों की वजह से होने वाली मौतें नौ फीसदी कम हुई है। जबकि हरियाणा में 2021 में 10,049 सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गईं और 2022 में यह आंकड़ा मामूली रूप से बढ़कर 10,654 हो गया। प्रदेश में 2021 में सड़क दुर्घटनाओं में 4,983 लोगों की मौत हुई जबकि 2022 में यह आंकड़ा 5,228 रहा। कनीना हादसे के बाद सख्ती दिखाते ही निजी स्कूलों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
सोमवार को आठ घंटे में 1429 स्कूल बसों की जांच की गई, इनमें से 613 बसों का चालान किया गया। प्रशासन ने मानकों पर खरी न उतरने वाली 113 स्कूली बसों को जब्त कर लिया, वहीं 3.57 लाख रुपये का जुर्माना वसूला गया। सरकार की इस सख्ती पर फेडरेशन आॅफ प्राइवेट स्कूल संघ ने ऐतराज जताया है। उन्होंने तो कनीना बस हादसे के लिए सरकार को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है। शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामले में बस ड्राइवरों की गलती मानने की बजाय फेडरेशन ऑफ प्राइवेट स्कूल संघ के प्रदेश अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा तो यह तक कह गए कि प्रदेश में शराब की दुकानें क्यों नहीं बंद करा दी जाती।
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प्रदेश के पांच जिलों में स्कूल संचालकों ने बसों का चालान काटने और जुर्माना लगाने के विरोध में अपने स्कूलों को बंद करने की घोषणा तक कर दी है। उन्होंने मांग की कि स्कूल वाहन नीति में निजी स्कूल संचालकों को भी शामिल किया जाना चाहिए। वैसे इस मामले में जितना दोषी सरकार है, उससे कहीं ज्यादा दोषी निजी स्कूल संचालक हैं। वे अभिभावकों से स्कूल बस की फीस मनमाने तरीके से वसूलते हैं, लेकिन बसों की क्षमता से ज्यादा बच्चों को जानवरों की तरह भर लेते हैं।
वैन में भी ज्यादा से ज्यादा आठ या नौ बच्चों के बैठने की जगह होती है, लेकिन इनमें 16-17 बच्चों को बिठाया जाता है। ऐसी हालत में बच्चों की हालत खराब हो जाती है। कई बार तो वे बीमार भी पड़ जाते हैं। इस मामले में अभिभावक भी लापरवाह रहते हैं। वे बच्चों की सुख-सुविधा के लिए स्कूल बस या वैन करते हैं और वे यह नहीं देखते हैं कि उनके बच्चे सुविधाजनक परिस्थितियों में आ-जा रहे हैं कि नहीं। वे स्कूल बस चालकों की मनमानी का विरोध भी नहीं करते हैं। कुछ मामले में सरकारी अधिकारी भी लापरवाही बरतते हैं। वे बस या वैन की फिटनेस, चालकों के ड्राइविंग लाइसेंस जैसी तमाम बातों पर ध्यान ही नहीं देते हैं। खटारा बसें और वैन सड़कों पर बेलगाम दौड़ती रहती हैं और वे बस खानापूर्ति में लगे रहते हैं।
-संजय मग्गू
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