महेंद्रगढ़ के कनीना में 11 अप्रैल 2024 को हुए बस हादसा मामले में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने स्कूल के निदेशक को जमानत देने से इनकार कर दिया। इस हादसे में छह बच्चों की मौत हो गई थी। बारह बच्चे बुरी तरह घायल हुए थे। इस मामले में विडंबना यह है कि 11 अप्रैल को ईद के अवसर पर सरकार ने स्कूलों में अवकाश घोषित कर रखा था। इसके बावजूद प्रदेश के अधिसंख्य इलाकों में निजी स्कूल खुले हुए थे। कनीना के जीएल पब्लिक स्कूल का मालिक भाजपा नेता बताया जाता है। वैसे भी प्रदेश सरकार के आदेशों की अवहेलना करना निजी स्कूलों ने एक रूटीन बना लिया है। सर्दियों या गर्मियों में जब मौसम को देखते हुए सरकार अवकाश घोषित करती है, तो कुछ प्रतिशत स्कूल जरूर खुले होते हैं, लेकिन जानकारी होने के बावजूद सरकार इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती है।
यदि सरकार के आदेश का पालन हो रहा होता, तो ईद के दिन काफी संख्या में स्कूल खुले हुए नहीं होते। यह तो सरकारी स्तर पर हुई लापरवाही की बात है। स्कूल प्रबंधन की निगाह में तो बच्चों के जान की कोई कीमत ही नहीं थी। जब अरुण नामक युवक ने स्कूल बस का पीछा करके रुकवाया और स्कूल प्रबंधन को बस चालक के शराब पिए हुए होने और हादसा होने की आशंका जताई थी, तब भी स्कूल प्रबंधन ने एहतियाती कदम नहीं उठाए। लोगों के विरोध करने के बाद भी उसी शराब पिए हुए ड्राइवर को बस वापस लाने को कहा गया। इसके बाद शराबी बस चालक ने बस को पेड़ से टकरा दिया। नतीजा यह हुआ कि छह बच्चों की असामयिक मौत हो गई।
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पिछले कई सालों से निजी स्कूलों ने यह रवैया अख्तियार कर रखा है कि स्कूल की बस, जीप या टैंपो से आने-जाने वाले बच्चों से शुल्क के रूप में एक अच्छी खासी रकम वसूल की जाती है। लेकिन बसों की फिटनेस, उनकी स्थिति पर ध्यान हीं दिया जाता है। स्कूल प्रबंधन कोशिश करता है कि कम से कम पैसे को ड्राइवर दिए जाएं। जिस स्कूल बस से कनीना में हादसा हुआ था, उस बस के ड्राइवर को मात्र नौ हजार रुपये ही मिलते थे।
इतनी कम रकम में कोई अपने परिवार का पालन पोषण कर सकता है। ऐसी स्थिति में बेकार, शराबी और अकुशल ड्राइवर ही इन स्कूलों की बसों, जीपों या टैंपो को चलाते हैं। निजी स्कूल संचालकों का यही उद्देश्य होता है कि पैरेंट्स से विभिन्न मदों में अधिक से अधिक वसूली की जाए और कर्मचारियों को कम से कम तनख्वाह या मानदेय दिया जाए ताकि अधिकतम मुनाफा कमाया जा सके। कई बार तो ये स्कूल संचालक अध्यापक भी कम पढ़ा लिखा रखकर काम चलाते हैं। विडंबना यह है कि बच्चों के मां-बाप भी कई मामलों में अनदेखी करते हैं। जिसका नतीजा अंतत: इस तरह के हादसे होते हैं।
-संजय मग्गू
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