नेल्सन मंडेला ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया। बारह साल की उम्र में ही पिता की मौत हो जाने के बाद से शुरू हुआ जीवन का संघर्ष अंत तक जारी रहा। दक्षिण अफ्रीका को स्वतंत्र कराने के लिए शुरू हुए आंदोलन के चलते कई साल उन्हें जेल में बिताने पड़े। उन पर कई मुकदमे दर्ज किए गए। इसके बावजूद नेल्सन मंडेला अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। वैचारिक धरातल पर वे महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा का अनुसरण करते थे।
सन 1952 में दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस की जोहानिसबर्ग में भेदभाव वाले कानून को रद्द करने की मांग को लेकर बैठक हुई। इस बैठक में प्रस्ताव पास किया गया कि अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस इस भेदभाव पूर्व कानून को रद्द करने की मांग वाला प्रस्ताव सरकार को सौंपेगी। इस प्रस्ताव पर अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. जेम्स मोरोको के हस्ताक्षर जरूरी थे। वह जोहानिसबर्ग से 120 मील दूर रहते थे। यह जिम्मेदारी नेल्सन मंडेला को सौंपी गई क्योंकि उनके पास कार चलाने का लाइसेंस था। उन दिनों युवा मंडेला अपने लक्ष्य की ओर चले।
काफी दूर जाने के बाद उनकी गाड़ी का पेट्रोल खत्म हो गया। अब बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई क्योंकि दूर-दूर तक पेट्रोल पंप नहीं था। वे दो मील पैदल चलकर एक फॉर्म हाउस पहुंचे और कहा कि मेरी गाड़ी का पेट्रोल खत्म हो गया है। क्या थोड़ा पेट्रोल मिलेगा। उस फॉर्म हाउस के मालिक ने घृणा से दरवाजा बंद कर दिया। निराश मंडेला एक मील बाद दूसरे फॉर्म हाउस वाले से कहा कि मैं ड्राइवर हूं। गाड़ी का पेट्रोल खत्म हो गया है। क्या थोड़ा पेट्रोल मिलेगा। यहां पेट्रोल भी मिला और उस फॉर्म हाउस वाले के चेहरे पर घृणा भी नहीं थी। यह झूठ बोलना मंडेला को जीवन भर कचोटता रहा।
-अशोक मिश्र
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