पंचायत विभाग ने फरीदाबाद के छह गांवों, सिरोही, शिलाखंडी, धौज, नूरपुर-धूमजपुर, बेचिराग और खोरी जमालपुर में अरावली पहाड़ के दायरे में आने वाली जमीन पर पौधरोपण का फैसला किया है। इस संबंध में प्रस्ताव सरकार को भेज दिया गया है। यदि प्रदेश सरकार की अनुमति मिलती है, तो अरावली पहाड़ के गैर मुमकिन क्षेत्र में पौधरोपण किया जाएगा। सरकारी दस्तावेज में गैर मुमकिन भूमि उस जमीन को कहते हैं जिस पर बागवानी, मुर्गी पालन, पशुपालन, मछली पालन, खेती आदि नहीं किए जा सकते हैं। आम तौर पर ऐसी जमीनों पर कटीली झाड़ियां, खरपतवार उगी रहती हैं। इनका कोई बहुत ज्यादा उपयोग भी नहीं होता है। यदि यह योजना सफल होती है, तो पांच-छह साल में निश्चित रूप से इन छह गांवों के आसपास अरावली क्षेत्र हराभरा हो जाएगा।
इन छह गांवों की 1373 एकड़ से अधिक भूमि को वन क्षेत्र बनाने में सफलता मिले, तो यह इन गांवों की एक बड़ी उपलब्धि होगी। यह प्रक्रिया यदि पूरे अरावली क्षेत्र के आसपास के गांवों में अपनाई जाए, तो अरावली पहाड़ को पहले की तरह हराभरा किया जा सकता है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि अरावली क्षेत्र की पहाड़ियों और वादियों में पिछले काफी दिनों से कूड़ा-कचरा डाला जा रहा है। इस मामले को पिछले दिनों पर्यावरण प्रेमियों ने सोशल मीडिया पर बड़ी जोरशोर से उठाने के अलावा सरकार से शिकायत भी की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। पिछले कई दशकों से अवैध वन कटान और खनन के चलते अरावली की पहाड़ियां धीरे-धीरे या तो खत्म या फिर नग्न होती जा रही हैं। सेंट्रल यूनिवर्सिटी आॅफ राजस्थान के शोधकर्ताओं ने पिछले साल जून में बताया था कि 1975 और 2019 के बीच अरावली पहाड़ियों का लगभग आठ प्रतिशत हिस्सा गायब हो गया है।
यदि अरावली क्षेत्र में शहरीकरण और खनन इसी गति से जारी रहा, तो वर्ष 2059 तक अरावली पहाड़ियों का 22 प्रतिशत हिस्सा गायब हो जाएगा। इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 1975 और 2019 के बीच उपग्रह चित्रों और भूमि उपयोग मानचित्रों का अध्ययन किया था। अरावली पर्वतमाला भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात से शुरू हो कर राजस्थान और हरियाणा में रायसीना पहाड़ियों से पहले तक करीब 700 किमी में फैला हुआ है। अरावली पहाड़ियों का ज्यादाकर हिस्सा करीब 550 किमी राजस्थान में है। यदि हमने अरावली क्षेत्र को संरक्षित कर लिया, तो दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दियों में होने वाली घुटन और वायु प्रदूषण से छुटकारा पाया जा सकता है। हरियाणा के गुरुग्राम, मेवात, फरीदाबाद, पलवल, रेवाड़ी, भिवंडी और महेंद्रगढ़ जैसे जिलों के लिए अरावली के पहाड़ भरपूर आक्सीजन दे सकते हैं। बस, अरावली क्षेत्र में पेड़ों की अवैध कटान और खनन रोकना होगा।
-संजय मग्गू
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