सोलहवीं शताब्दी में जापान में काफी अराजकता व्याप्त थी। छोटे-छोटे राज्य आपस में ही लड़ते रहते थे। ऐसे ही अराजकतापूर्ण माहौल में जापान का सेनापति नाम से विख्यात हुए नोबुनागा का जन्म 1534 में नागोया कैसल में हुआ था। वह एक वीर लड़ाका होने के साथ-साथ अच्छा सेनापति भी था। उसे सेनापति के पद पर पहुंचने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी थी। एक बार की बात है। वह अपनी सेना के साथ पड़ोसी राज्य पर हमला करने जा रहा था। उसकी सेना कम थी, लेकिन उनका दुश्मन काफी शक्तिशाली और विशाल सेना का मालिक था।
इस बात से नोबुनागा की सेना सहमी हुई थी। वह अपने सेनापति की बात को टाल तो नहीं सकती थी, लेकिन उसके मन में उत्साह की भारी कमी थी। सेनापति नोबुनागा ने यह बात अच्छी तरह से भांप ली। लेकिन वह सेना के साथ चलता रहा। कुछ दूर जाने पर उसे एक बौद्ध मठ दिखाई दिया। उसने सेना को रुकने का आदेश दिया और कहा कि मैं पूजा करके आता हूं। तुम लोग मेरा इंतजार करना। इसके बाद वह मठ में चला गया।
थोड़ी देर बाद प्रसन्न होकर नोबुनागा लौटा और बोला कि मैं यह सिक्का हवा में उछालूंगा। यदि ऊपर राजा की तस्वीर वाला हिस्सा आया, तो हमारी जीत होगी। अगर दूसरी तरफ का हिस्सा आया तो हम हार जाएंगे। यह कहकर उसने सिक्का उछाला, टन की आवाज करता हुआ सिक्का गिरा। राजा की तस्वीर वाला हिस्सा सामने था। इसके बाद सेना में उत्साह आ गया। भीषण लड़ाई के बाद नोबुनागा की सेना जीत गई। एक दिन उपसेनापति ने कहा कि आखिर ईश्वर का वरदान काम आया। हम जीत गए। सेनापति नोबुनागा ने वह सिक्का निकालकर उसके हाथ पर रख दिया। उस सिक्के के दोनों तरफ राजा की तस्वीर थी।
-अशोक मिश्र