उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगरा में दुर्गादास रौठार की प्रतिमा का अनावरण करते हुए कहा कि अगर आप लोग बंटेंगे, तो कटेंगे। बांग्लादेश वाली गलतियां यहां न हों, इसलिए एक रहना बहुत जरूरी है। योगी आदित्यनाथ ने यह बात मंतव्य से कही है, उसके निहितार्थ अलग-अलग हो सकते हैं। उत्तर प्रदेश में दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। हो सकता है उसको ध्यान में रखकर उन्होंने यह बयान दिया हो, लेकिन जहां तक बांग्लादेश की बात है। सचमुच बांग्लादेश वाले अब गलतियां कर रहे हैं। छात्र आंदोलन में शामिल लोगों ने पहली गलती तब की थी, जब वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना के भागने पर उन्मादित भीड़ ने हिंदू मंदिरों और अल्पसंख्यकों के घरों पर हमला किया। उनके साथ मारपीट की, लड़कियों से दुराचार किए। हालांकि ऐसा करने वाले कुछ ही लोग थे, लेकिन भारत और दुनिया में छात्र आंदोलन को लेकर जो सकारात्मक भाव था, वह मलिन हो गया।
छात्र आंदोलन के माथे पर एक तरह से बदनुमा दाग लग गया। छात्र आंदोलन का उद्देश्य भले ही कितना पवित्र और देश हित में रहा हो, लेकिन अल्पसंख्यकों के लिए तो दुखदायी ही रहा। आंदोलन के दौरान जिस तरह पुराने प्रतीकों को मिटाने का काम शुरू हुआ, वह बांग्लादेशवासियों की दूसरी गलती है। कोई भी देश अपने इतिहास को भुलाकर आगे नहीं बढ़ सकता है। आज ‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा ढहाई जा रही है, प्रतिमा के सिर पर मूत्र विसर्जन किया जा रहा है, बांग्लादेश में जगह-जगह लगी प्रतिमाओं का मुंह काला किया जा रहा है, यह वही ‘बंगबंधु’ थे जिन्होंने बांग्लादेश को पाकिस्तानी आतंक और अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी। बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का उदय कराया था। इस इतिहास को कैसे भुला पाएंगे, छात्र आंदोलन में भाग लेकर अपने देश को शेख हसीना के तानाशाही शासन से मुक्ति दिलाने वाले लोग और छात्र। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि शेख हसीना का तानाशाही रवैया वहां की जनता पर भारी पड़ रहा था।
‘बंगबंधु’ तानाशाह कही जाने वाली शेख हसीना के पिता थे, इसलिए उनसे जुड़ी चीजों और इतिहास को मिटा देना, कतई उचित नहीं है। लेकिन यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है। जब सन 1971 को बांग्लादेश आजाद हुआ था, तब भी आज जैसी घटनाएं हुई थीं। देश कोई भी हो, अगर वहां कोई अच्छी घटना हुई है, तो उस देश के लोगों को उससे सबक सीखना चाहिए, उससे प्रेरणा लेनी चाहिए। यदि कुछ गलत हुआ है, तो उस जैसी घटना की पुनरावृत्ति न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। सन 1971 में पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) से जुड़ी जितनी भी चीजें थीं,
आजादी पाने से उन्मादित भीड़ ने ऐसे ही उन सबको तहस नहस किया था। सब मटियामेट कर दिया था। वही घटनाएं आज भी दोहराई जा रही हैं। पाकिस्तान का हिस्सा रहे बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ बुरा बरताव हुआ था। उस घटना से कम से कम आज तो सबक लेना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बस, उन्मादित भीड़ निकल पड़ी, अपने ही इतिहास को दोहराने और मिटाने।
-संजय मग्गू