हरियाणा में चुनावी बिसात बिछ चुकी है। अगर केंद्रीय चुनाव आयोग ने कल चुनाव की तारीख आगे बढ़ाने का फैसला किया, तो हद से हद एक सप्ताह तक बढ़ाएगा। अक्टूबर के पहले हफ्ते में चुनावी संग्राम होना तय माना जा रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अलग-अलग क्षेत्र के स्थानीय नेताओं के सहारे चुनावी वैतरणी पार उतरने की योजना बनाने में जुट गए हैं। छोटा सा प्रदेश हरियाणा बोली, माटी और राजनीतिक रूप से छह भागों में विभाजित है। यह छह क्षेत्र देशवाली (रोहतक, सोनीपत, झज्जर, पानीपत और हिसार का कुछ हिस्सा), बागड़ (सिरसा, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी का कुछ हिस्सा), बांगर (जींद और कैथल), नरदक (पंचकूला, यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल और कैथल), अहीरवाल (महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, गुरुग्राम) और मेवात-बृज क्षेत्र (पलवल, फरीदाबाद, नूंह, गुरुग्राम) हैं जो अपनी-अपनी विशेषता और राजनीतिक समीकरण को प्रकट करते हैं।
इन क्षेत्रों में भाजपा और कांग्रेस का लगभग वर्चस्व है। कांग्रेस किसी इलाके में मजबूत है, तो भाजपा किसी इलाके में। वैसे भाजपा और कांग्रेस के प्रदेश स्तरीय नेताओं का पूरे प्रदेश में वर्चस्व है, लेकिन उनकी पहचान उसी क्षेत्र विशेष से होती है। उस पूरे इलाके में इनका प्रभाव होता है। जाहिर सी बात है कि यह दोनों दल इन सभी छह क्षेत्रों के रसूख रखने वाले नेताओं पर ही विधानसभा चुनाव जीतने और जितवाने का पूरा भार रख रहे हैं। वैसे भाजपा को विधानसभा चुनाव के दौरान आरएसएस और उसके आनुषांगिक संगठनों का भी सहयोग मिल रहा है। इन संगठनों के कार्यकर्ता पूरी तरह से प्रदेश में सक्रिय हो गए हैं। वे घर-घर जाकर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं। बूथ स्तर तक उतर चुके आरएसएस और सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ता भाजपा सरकार के कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी देकर विपक्षी दलों की कमियां गिना रहे हैं।
इससे भाजपा कार्यकर्ताओं का भी मनोबल बढ़ा हुआ है। सीएम नायब सिंह सैनी अपने पूर्ववर्ती मनोहर लाल की उपलब्धियों और कार्यों को ही भुनाने की कोशिश में हैं। उनके द्वारा की गई कई घोषणाओं पर अभी अमल नहीं हो पाया है। इसके बावजूद चुनाव परिणाम क्या होंगे, यह कह पाना अभी बहुत मुश्किल है। कांग्रेस कार्यकर्ता भी लोकसभा चुनावों में मिली जीत की वजह से काफी हौसलेमंद हैं। वे भाजपा शासन की कमियों और किसान आंदोलन के दौरान किए गए व्यवहार को प्रमुखता से उठा रहे हैं। बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे भाजपा के लिए काफी परेशानी का सबब बन सकते हैं। राजनीतिक हलके में यही माना जा रहा है कि मुख्य मुकाबला इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। बाकी पार्टियां वोट भले ही काट लें, सरकार बनाने में कतई सफल नहीं होंगी।
-संजय मग्गू