कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे(JanDhan Yojna Kharge: ) ने प्रधानमंत्री जनधन योजना के 10 साल पूरे होने के मौके पर भाजपा सरकार पर निशाना साधा और दावा किया कि यह योजना वास्तव में कांग्रेस सरकार के समय की वित्तीय समावेशन योजना का नाम बदलकर पेश की गई है। उन्होंने इस अवसर पर कई सवाल उठाए और आरोप लगाया कि भाजपा सरकार कांग्रेस की पुरानी योजनाओं को अपना नाम देकर प्रचार कर रही है।
JanDhan Yojna Kharge: खरगे का दावा, 10 करोड़ से ज्यादा जनधन खाते बंद
खरगे ने ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए सवाल किया कि क्या यह सच नहीं है कि 10 करोड़ से ज्यादा जनधन बैंक खाते बंद हो चुके हैं, जिनमें करीब 50 प्रतिशत खाते महिलाओं के थे? उन्होंने यह भी कहा कि दिसंबर 2023 तक इन बंद हुए खातों में 12,779 करोड़ रुपये जमा थे। खरगे ने पूछा कि कुल जनधन खातों में से 20 प्रतिशत खातों के बंद होने के पीछे कौन जिम्मेदार है? उन्होंने आगे कहा कि पिछले 9 वर्षों में जनधन खातों में औसत बैलेंस 5000 रुपये से भी कम है, जो कि केवल 4,352 रुपये है। खरगे ने सवाल किया कि इतने कम पैसों में भाजपा की कमरतोड़ महंगाई के बीच एक गरीब व्यक्ति कैसे अपना जीवन यापन कर सकता है? इसके साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि 2018 से 2024 तक मोदी सरकार ने आम और जनधन खातों को मिलाकर न्यूनतम बैलेंस न होने पर, अतिरिक्त एटीएम लेनदेन और एसएमएस शुल्क के जरिए करीब 43,500 करोड़ रुपये वसूले हैं।
‘कांग्रेस ने 24.3 करोड़ गरीबों के लिए बैंक खाते खोले थे‘
खरगे ने कांग्रेस-संप्रग सरकार की वित्तीय समावेशन की पहल की तारीफ करते हुए कहा कि मार्च 2014 तक कांग्रेस सरकार ने 24.3 करोड़ गरीबों के लिए बैंक खाते खोले थे। उन्होंने दावा किया कि आज मोदी सरकार जिस योजना का ढिंढोरा पीट रही है, वह वास्तव में कांग्रेस की ही योजना थी। उन्होंने बताया कि 2005 में कांग्रेस-संप्रग सरकार ने बैंकों को ‘नो फ्रिल्स अकाउंट’ (जिनमें न्यूनतम बैलेंस की शर्त नहीं होती) खोलने का निर्देश दिया था। इसके बाद, 2010 में रिजर्व बैंक ने बैंकों को वित्तीय समावेशन योजना तैयार करने और लागू करने का निर्देश दिया था।
भाजपा पर विज्ञापनबाज़ी में लीन होने का आरोप लगाया
खरगे ने बताया कि 2011 में कांग्रेस-संप्रग सरकार ने ‘स्वाभिमान’ योजना की शुरुआत की थी, और 2012 में ‘नो फ्रिल्स अकाउंट’ का नाम बदलकर ‘बेसिक सेविंग्स बैंक डिपॉज़िट अकाउंट’ (बीएसबीडीए) कर दिया गया था। 2013 में बैंकों को वित्तीय समावेशन योजना को 2016 तक बढ़ाने का निर्देश दिया गया था, जिसे मोदी सरकार ने ‘जनधन योजना’ का नाम दे दिया। खरगे ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस के समय की योजनाओं का इस्तेमाल कर ‘‘विज्ञापनबाज़ी’’ में लीन हैं, और भाजपा सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने मांग की कि सरकार जनता को सही जानकारी दे और यह स्वीकार करे कि जनधन योजना कांग्रेस की ही पहल का हिस्सा थी।