उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में 9 मई 1864 को महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म हुआ था। धनााभाव के कारण द्विवेदी जी की शिक्षा अधिक नहीं हुई थी। 25 साल की उम्र में वह जीआरपी रेलवे में 20 रुपये मासिक पर नौकरी पा गए। एक साल की नौकरी के बाद उसे छोड़कर मुंबई गए और टेलीग्राफ सीखकर रेलवे में तार बाबू हो गए। सन 1905 में अधिकारियों से तालमेल नहीं बैठने के कारण दो सौ रुपये की नौकरी छोड़कर उन्हें 20 रुपये मासिक पर सरस्वती के संपादक हो गए। नौकरी के दौरान उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और हिंदी के साथ-साथ संस्कृत, गुजराती और मराठी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। एक बार की बात है।
वह अपने गांव गए हुए थे। एक दिन वह अपने खेत की ओर निकले तो वहां खेत में काम कर रही महिलाओं ने काम करना बंद कर दिया। तब पंडित जी ने कहा कि आप लोग अपना काम कीजिए। मैं तो खेतों की हरियाली देखने आया था। इसके बाद वह खेतों का निरीक्षण करने लगे। थोड़ी देर बाद हल्ला मचा कि एक महिला को सांप ने डस लिया है। वह उस महिला के पास गए और अपना जनेऊ निकालकर उस महिला के पैर में बांध दिया।
खुरपी से उन्होंने डसने वाली जगह पर चीरा लगा दिया। उस महिला की जान बच गई। यह घटना जैसे ही गांव में फैली पंडितों ने कहना शुरू किया कि जनेऊ को एक अछूत महिला के पैरों में बांधकर द्विवेदी जी ने अच्छा नहीं किया। अब ब्राह्मणों और जनेऊ की इज्जत कौन करेगा? जब यह बात द्विवेदी जी ने सुनी तो उन्होंने कहा कि जनेऊ का इससे अच्छा उपयोग और क्या हो सकता था कि एक महिला की जान बच गई। अब तो आप लोगों को इस जनेऊ का और अधिक सम्मान करना चाहिए। यह सुनकर लोगों की जुबान बंद होगई।
-अशोक मिश्र