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विपक्षी एकता मजबूत होने का संदेश देने को कांग्रेस-आप मिला रहे हाथ

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हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन लगभग तय हो चुका है। औपचारिक घोषणा कभी भी हो सकती है। कांग्रेस ने आप को पांच सीटें दी हैं। यह पांच सीटें जींद, कलायत, गुहला पानीपत ग्रामीण और पिहोवा बताई जा रही हैं। प्रदेश की राजनीति में पहली बार मंगलवार को जब आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन की बात उठी, तो ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक चकित हो उठे थे। कांग्रेस इस बार काफी मजबूत स्थिति में दिखई दे रही है। सत्ता विरोधी लहर और किसानों का असंतोष उसे सत्ता के करीब होता हुआ दिखाई दे रहा है, ऐसे स्थिति में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने आम आदमी पार्टी से गठबंधन क्यों किया? सियासी हलके में चर्चा है कि पहली बात तो कांग्रेस हाईकमान नहीं चाहता है कि वह हरियाणा में चौतरफा मुकाबले में घिरा हुआ पाया जाए।

कांग्रेस के सामने भाजपा सबसे बड़ी चुनौती तो है ही। उसके अलावा जजपा और चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी के साथ-साथ जजपा और बसपा का गठबंधन हो चुका है। अगर आप के साथ कांग्रेस गठबंधन नहीं करती, तो उसे चौतरफा हमला झेलना पड़ता। ऐसी स्थिति में कांग्रेस चाहती थी कि जनता में यह संदेश कतई न जाए कि इंडिया गठबंधन में फूट है। पंजाब में कांग्रेस और आप ने भले ही लोकसभा चुनाव अलग-अलग लड़ा हो, लेकिन गोवा, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली में दोनों दलों ने तालमेल करके चुनाव लड़ा था। इसमें दिल्ली को छोड़कर बाकी सभी जगहों पर कांग्रेस को पहले की अपेक्षा लाभ हुआ था। आप को पांच सीटें देने के बाद पूरे देश में कांग्रेस की छवि एक बड़े दिल वाले दल के रूप में उभर कर सामने आएगी। इसका फायदा उसे महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले चुनावों के दौरान मिल सकता है। कांग्रेस और आप दोनों चाहते हैं कि प्रदेश की सत्ता पर भाजपा काबिज नहीं होनी चाहिए, भले ही कोई दूसरा सत्ता पर काबिज हो।

इस मनोदशा के चलते कांग्रेस समाजवादी पार्टी को भी कुछ सीटें देकर हरियाणा में उसे मौका दे सकती है। विपक्षी गठबंधन की मजबूत एकता का संदेश देने से कांग्रेस वे वोट भी हासिल होने की संभावना है जो अंतिम समय तक असमंजस में रहते हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के सामने एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरे इंडिया एलायंस को राहुल गांधी हरियाणा में उतारना चाहते हैं। यही वजह है कि राहुल गांधी उन सभी पार्टियों को अपने साथ लेने की फिराक में हैं जो भाजपा के खिलाफ हैं। जम्मू-कश्मीर में भी उन्होंने नेशनल कांफ्रेंस से समझौता करके दिखा दिया है। वह तो भीतर-भीतर गुलाम नबी आजाद को भी अपने साथ लेना चाहते थे, लेकिन पूर्व कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद ने ही साथ आने से मना कर दिया।

-संजय मग्गू

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