Sunday, December 22, 2024
13.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiग्लोबल वार्मिंग और भोजन की कमी पशुओं को बना रही उग्र

ग्लोबल वार्मिंग और भोजन की कमी पशुओं को बना रही उग्र

Google News
Google News

- Advertisement -

वन्य जीव और मानव के बीच का संघर्ष कोई नया नहीं है। सदियों पुराना है। लेकिन जैसे-जैसे मनुष्य बस्तियों, नगरों में रहने लगा, वैसे-वैसे उसने जंगल, नदी के कछार, पर्वतीय इलाकों की गुफाएं उन पशुओं के लिए छोड़ दी जो वन्य जीवों के शिकार पर निर्भर थे। पिछले कई सौ साल से लगातार वन्यजीव और मानव के बीच संघर्ष घटता आ रहा था, लेकिन इधर कुछ वर्षों से दोनों में संघर्ष बढ़ा है। इन दिनों उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में भेड़ियों के नरभक्षी हो जाने को लेकर पूरे उत्तर भारत में चर्चा हो रही है। मीडिया में खूब चर्चा हो रही है। प्रशासनिक स्तर पर इसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है। कुछ भेड़ियों को पकड़ा भी गया है। भारत में भूरे रंग वाले जो भेड़िये पाए जाते हैं, वह कैनिस ल्यूपस पैलिप्स प्रजाति के हैं जो प्राय: लुप्त हो रही हैं। पूरे देश में सिर्फ चार-पांच सौ भेड़िए ही बचे हैं। ऐसा वन्य जीव विशेषज्ञों का अंदाजा है। असल में दुनिया भर में हिंस्र पशु अब मानव बस्तियों में आकर हमला कर रहे हैं।

दक्षिण अफ्रीका के देश नामीबिया में जंगली पशु आहर न मिलने की वजह से मानव बस्तियों के पास आकर भोजन की तलाश कर रहे हैं। भोजन नहीं मिलने पर वे इंसानों पर भी हमला करने से हिचक नहीं रहे हैं। वहां तो इंसानों को दाने-दाने का मोहताज होना पड़ रहा है। इसलिए उन्होंने तो पशुओं को मारकर खाना शुरू कर दिया है। भारत में फिलहाल ऐसी स्थिति की अभी दूर-दूर तक कोई आशंका नहीं है। लेकिन उस स्थिति का क्या करें जिसमें हमने अपने आसपास सदियों से शांतिपूर्वक रहने वाले पशुओं के प्राकृतिक आवासों और पर्यावरण में अतिक्रमण किया है। देश में पिछले कई दशकों से लगातार घटते वनक्षेत्र की वजह से इन वनक्षेत्रों में रहने वाले हिंस्र पशुओं के लिए भोजन की उपलब्धता कम होती गई है। भरपूर वनक्षेत्र होने से उन्हें आसानी से अपना भोजन उपलब्ध हो जाता था। वनक्षेत्र घटे, तो वे वनों से निकलकर बाहर आने लगे। यही वजह है कि अक्सर नगरों और गांवों में बाघ, तेंदुआ, भेड़िया, सियार जैसे जानवर अधिक मात्रा में दिखाई देने लगे हैं।

अगर हम अपने आसपास की परिस्थितियों पर गौर करें, तो हमारी बस्तियों और मोहल्लों में रहने वाले कुत्ते भी अब उग्र होने लगे हैं। ऐसी घटनाएं अब आम हो चली हैं कि बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं को देखकर कुत्ते झुंड बनाकर हमला करते हैं। बच्चों को उठा ले जाते हैं। दरअसल, इसके पीछे हमारे विकास की बेतुकी अवधारणा और ग्लोबल वार्मिंग जैसे कारक जिम्मेदार हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जिस तरह मनुष्यों में, मौसम में बदलाव आ रहा है, उसी वजह से पशुओं में भी कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। उनके स्वभाव में भी परिवर्तन आ रहा है। कुत्ते से लेकर बाघ और तेंदुआ तक भोजन की कमी के शिकार हैं। ऐसी स्थिति में वे इंसानों पर हमला कर रहे हैं। कुछ मामलों में इन पशुओं में ग्लोबल वार्मिंग के चलते पैदा हुई नई-नई बीमारियां और रैबीज भी जिम्मेदार हैं।

-संजय मग्गू

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

Recent Comments