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अब जोड़ियां ऊपर वाला नहीं, एप्स तय करते हैं

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हमारे देश में सदियों पुरानी मान्यता रही है कि जोड़ियां ऊपर से ही बनकर आती हैं। पृथ्वी पर तो लड़का-लड़की मिलकर भगवान द्वारा तय की गई जोड़ी को पूर्णता प्रदान करते हैं। यही वजह है कि भारत में खासतौर पर उत्तर भारत में किसी लड़की का विवाह करवा देना पुण्य का काम माना जाता था। लोग अपने काम का नुकसान करके भी लड़की का विवाह कराने में सुकून महसूस करते थे। भारत में जब इंटरनेट युग का पदार्पण नहीं हुआ था, तब रिश्तेदार, मित्र या गांव-मोहल्ले के लोग मध्यस्थ बनकर शादियां करवाते थे। यह मध्यस्थ कोई भी हो सकता था। मामा, फूफा, मौसा, गांव या बिरादरी के लोग किसी की लड़का या लड़की के विवाह योग्य होने पर इस पुनीत कार्य में जुट जाते थे। दोनों पक्षों को मिलाने से लेकर दान-दहेज तय करने में इन मध्यस्थों की बड़ी अहम भूमिका रहती थी। मध्यस्थ दोनों पक्ष की अच्छाई-बुराई से वाकिफ रहता था। मध्यस्थ व्यक्ति दोनों पक्ष को एक दूसरे की अच्छाई बुराई से भी परिचित करा देता था।

यदि दोनों पक्ष सहमत होते थे, तो बात आगे बढ़ती थी। विवाह संपन्न हो जाता था। यही वजह थी कि इंटरनेट युग से पहले तलाक के मामले बिल्कुल शून्य होते थे क्योंकि विवाह संपन्न होने तक की प्रक्रिया में कई लोग शामिल होते थे और उनके मान-सम्मान भी शादी से जुड़े होते थे। लेकिन फिर इंटरनेट आया। तमाम तरह के मैट्रीमोनियल वेबसाइट्स आए। लाखों लड़के-लड़कियों की शादी कराने का दावा करने वाली साइट्स ने दो नितांत अपरिचित परिवारों को विवाह की बेदी तक पहुंचने में एक निष्क्रिय मध्यस्थ की भूमिका निभाई। उन्होंने लड़की और लड़के के परिवारों द्वारा दी गई जानकारी को वेबसाइट्स पर अपलोड कर दी। लोगों ने बातचीत की, एकदूसरे के परिवार से मिले। वर-वधू के बीच थोड़ी बहुत बातचीत हुई और आर्थिक स्थिति समान होने या दहेज वगैरह की मांग पूरी होने पर शादी हो गई।

इस मामले में नकारात्मक पक्ष यह है कि दोनों पक्ष एक दूसरे की बहुत सारी अच्छाई-बुराई के बारे में नहीं जान पाते हैं। वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए बायोडाटा में सब कुछ अच्छा ही अच्छा लिखा रहता है। बाद में किसी मामले में सच्चाई उजागर हो जाती है, तो बात मारपीट, घरेलू हिंसा और फिर अंतत: तलाक तक पहुंच जाती है। जोड़ियां बनाने का काम सोशल साइट्स, डेटिंग एप्स, मैच मेकिंग एप्स करने लगे, तो मामले उलझने लगे। धीरे-धीरे लोग इससे ऊबने लगे। काला पक्ष छिपा होने की गुंजाइश की वजह से इन एप्स और साइट्स की विश्वसनीयता घटी तो लोगों ने अपनी-अपनी रुचि वाले एप्स पर जीवन साथी की तलाश करनी शुरू कर दी है। हॉबी एप्स अब जोड़ियां बना रहे हैं। गुडरीड्स और स्ट्रावा जैसे एप्स से जुड़कर लोग अपने लिए जीवन साथी की तलाश रहे हैं। इस ग्रुप से जुड़े लोगों की समान रुचि को देखते हुए लड़का और लड़की एक दूसरे से मिलते हैं, बात करते हैं, कुछ दिन साथ बिताते हैं। और यदि समझ में आया तो जोड़ी भी बना लेते हैं।

-संजय मग्गू

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