श्रावस्ती के जेतवन में महात्मा बुद्ध ने चौबीस साल तक वर्षा काल बिताया था। जेतवन महाराजा प्रसेनजित के पुत्र राजकुमार जेत का था। जिसे महात्मा बुद्ध के लिए एक भक्त व्यापारी ने खरीदकर उनके रहने के लिए दे दिया था। श्रावस्ती में राजकुमार जेत द्वारा लगाया गया जेतवन आज भी मौजूद है। एक बार की बात है। महात्मा बुद्ध जेतवन में अपनी कुटी के सामने बैठे शिष्यों के साथ बातचीत कर रहे थे। उसी समय लोग अपनी समस्याओं को लेकर आते और तथागत उनका समाधान करते। इतने में एक व्यक्ति तथागत के पास पहुंचा और बोला, भगवन! मैं लोगों की सेवा करना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि मैं हर आदमी के साथ कुछ ऐसा करूं जिससे उसको सुख मिले। लेकिन क्या करूं? मैं बहुत गरीब आदमी हूं। यही वजह है कि मैं किसी की मदद नहीं कर पा रहा हूं।
मेरे पास कोई धन-संपत्ति भी नहीं है जिसको बेच कर किसी की मदद कर सकूं। इतना कहकर वह व्यक्ति तथागत के सामने रोने लगा। महात्मा बुद्ध ने पहले उसे सांत्वना दी और उसके बाद बोले, तुम अपनी अज्ञानता की वजह से किसी की सेवा नहीं कर पाए। तुम्हारे पर कितनी संपत्ति है, इसका तो तुम्हें कोई अंदाजा ही नहीं है। किसी की सेवा या मदद करने के लिए धनवान होना या धन-संपत्ति होना कोई जरूरी नहीं है। तुम्हारे पास सबसे कीमती जुबान है। तुम किसी पीड़ित व्यक्ति से मीठी जुबान में बात करके उसे सांत्वना दे सकते हो।
उसे हौसला दे सकते हो। तुम्हारे पास दो बाहें हैं। तुम उसकी मदद कर सकते हो। किसी गरीब की झोपड़ी बनाने में मदद कर सकते हो। तुम्हारे पास दो आंखें हैं। तुम किसी दृष्टिहीन व्यक्ति को रास्ता दिखा सकते हो। तुम्हारे पास तो सब कुछ है, लेकिन अज्ञानता की वजह से अपने को गरीब मानकर बैठे हुए हो। यह सुनकर वह प्रसन्न हो गया। उसकी समस्या का समाधान हो चुका था।
-अशोक मिश्र