शांत रहकर मन की चंचलता दूर करो
अशोक मिश्र–
महात्मा बुद्ध ने लोगों को बहुत ही सरल अंदाज में जीने और सुखी रहने के तरीके बताए। उन्होंने अपने उपदेशों में हमेशा शांति और अहिंसा की बात की। वह हमेशा शुचितापूर्ण जीवन जीने की बात करते रहे। उनका मानना था कि हमारा मन बहुत चंचल है। उसकी चंचलता की वजह से तमाम बुराइयां हमारे भीतर पैदा हो जाती हैं। यदि शांत रहकर मन की चंचलता दूर करने का प्रयास किया जाए, तो जीवन शुद्ध हो जाएगा। एक बार की बात है। महात्मा बुद्ध अपने शिष्य आनंद के साथ कहीं जा रहे थे। उन्हें बड़ी तेज प्यास लगी। उन्होंने अपने शिष्य आनंद को बुलाया और कहा कि मुझे प्यास लगी है। कहीं से पानी ले आओ। यह सुनते ही आनंद पात्र लेकर पास में बह रहे झरने की ओर बढ़ा। तभी उसने देखा कि उस झरने से थोड़ा पहले बैलगाड़ियां गुजर रही थीं। जिनकी वजह से झरने का पानी गंदा हो गया था। वह पानी किसी भी हालत में पीने के लायक नहीं था। उसने आसपास जल की खोज की, लेकिन उसे पीने लायक पानी नहीं मिला। वह थक हारकर बुद्ध के पास पहुंचा और सारी बात बताई। यह सुनकर महात्मा बुद्ध मुस्कुराए और बोले, फिर उसी झरने के पास जाओ और जल भर लाओ। आनंद फिर वहीं गया, लेकिन झरने का पानी अब भी गंदा ही था। वह लौट आया और बुद्ध से बोला, झरने का पानी अभी गंदा है। तब महात्मा बुद्ध बोले, एक बार फिर उस झरने के पास जाओ। आनन्द तीसरी बार वहां पहुंचा, तो पाया कि झरने का पानी थोड़ा साफ हुआ है, लेकिन पीने लायक नहीं है। वह खाली हाथ लौटा, तो बुद्ध ने चौथी बार उसी झरने के पास भेजा। इस बार पानी की गंदगी बैठ गई थी और पानी एकदम साफ था। वह जल लेकर बुद्ध के पास पहुंचा, तो बुद्ध ने कहा कि विचारों की बैलगाड़ियां हमारे दिमाग को हमेशा गंदा कर देती हैं। हमें इन गंदगियों के बैठने का इंतजार करना चाहिए।