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मां दुर्गा अपने भक्त की भावना देखती हैं, भव्यता नहीं

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संजय मग्गू
हमारे देश के ज्यादातर तीज-त्यौहार प्रकृति से जुड़े रहे हैं। हमारे देश का सबसे प्राचीन धर्म सनातन प्रकृति पूजकों का धर्म रहा है। हमारे देश में किसी न किसी रूप में प्रकृति की पूजा होती रही है। प्रकृति की पूजा करने के पीछे मकसद यही था कि हम अपनी भावी पीढ़ी को प्रकृति की सुरक्षा करने का भाव पैदा कर सकें। इन दिनों पितृ पक्ष चल रहे हैं। कुछ ही दिनों बाद नवरात्रि आने वाली है। नवरात्र के दिनों में प्राचीनकाल में नौ देवियों की पूजा-आराधना की परंपरा रही है। चार-पांच सौ साल पहले शायद आज की तरह भव्य प्रतिमाओं को बनाने  और जलस्रोतों में विसर्जित कर देने का चलन नहीं रहा होगा। आजकल तो मां दुर्गा की विशालकाय और भव्य प्रतिमाओं के निर्माण का चलन है। जितनी अधिक भव्य और ऊंची, आयोजनकर्ता की उतनी ही प्रशंसा। नौवें दिन हम अपनी आराध्य देवी की प्रतिमा को विसर्जित कर देते हैं। हम यदि चाहें तो छोटी-सी प्रतिमा की भी पूजा कर सकते हैं। यदि हमारी धार्मिक भावना और परंपरा में बाधा न बने, तो हम इन्हें भू समाधि भी दे सकते हैं। ऐसा करने से हमारे जलस्रोत तालाब, नदी आदि प्रदूषित होने से बच जाएंगे। हमारा सनातन धर्म कहीं भी यह नहीं बताता है कि भूमि, जल या वायु को प्रदूषित किया जाए। देवी-देवताओं की पूजा हम सच्चे मन से करें, तो एक छोटी सी मूर्ति से भी कर सकते हैं। हमारा उद्देश्य देवी मां की आराधना ही तो है। मूर्ति छोटी हो या बड़ी क्या फर्क पड़ता है। सच्चे मन से की गई पूजा से ही मां दुर्गा प्रसन्न होंगी, भव्यता से नहीं। मूर्तियों को बनाने में लगने वाली मिट्टी, रासायनिक रंग, लोहा, प्लास्टिक और अन्य पदार्थ हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हमें इस बात को समझना होगा। सनातन धर्म में नदियों, पेड़-पौधों, सूर्य, चांद, तारों और प्रकृति के सभी अंगों की पूजा करने का विधान है। हम सनातन धर्मी प्रकृति पूजक आखिर प्रकृति को नुकसान पहुंचाने की बात कैसे सोच सकते हैं। हम किसी पंडाल में मां की एक छोटी सी मनोहर मूर्ति स्थापित करके सामूहिक रूप से कीर्तन, भजन कर सकते हैं। धर्म-अध्यात्म की चर्चा कर सकते हैं। अपने पौराणिक आख्यानों से युवाओं और नई पीढ़ी को परिचित करा सकते हैं। इससे पूजा का उद्देश्य पूर्ण होगा। नई पीढ़ी अपने धर्म को जान-समझ सकेगी। मां दुर्गा अपने भक्त की भावना देखती हैं, भव्यता नहीं। भव्यता तो प्रदर्शन की चीज है। हम अपने आराध्य के सामने भव्यता का प्रदर्शन कर रहे हैं या लोगों के सामने। जो इस प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है, जो अंतर्यामी है, जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड की क्रियाएं छिपी हुई नहीं हैं, उनके सामने हम अपने आचरण से क्या साबित करना चाहते हैं? यह संपूर्ण प्रकृति ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश की प्रतिकृति है। मां पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा जैसी न जाने कितनी देवियों का रूप यह हमारी प्रकृति ही तो है। हमें अपनी प्रकृति में ही इन समस्त देवी-देवताओं को देखना होगा, तभी बिगड़ते पर्यावरण को सुधारा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन को रोका जा सकता है। नदियों, समुद्र, तालाबों, बावड़ियों को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है। यही हमारी अपनी मां देवी दुर्गा और उनके प्रतिरूपों के प्रति सच्ची श्रद्धा होगी।

संजय मग्गू

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