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टीएमसी और कांग्रेस को नजदीक ला पाएंगे शुभंकर सरकार?

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संजय मग्गू
अधीर रंजन चौधरी की प्रदेश अध्यक्ष पद से विदाई के बाद यह तय हो गया है कि कांग्रेस पश्चिमी बंगाल में जहां तृणमूल कांग्रेस के प्रति नरम रवैया अपनाएगी, वहीं वह अपने संगठन को मजबूत करने पर ध्यान देगी। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का सबसे पहला लक्ष्य पार्टी संगठन को एक बार फिर ठीक उस तरह खड़ा करना है जिस तरह का संगठन कांग्रेस के वामंथी दलों से पराजय से पहले था। तब कांग्रेस संगठन इतना मजबूत था कि पूरे प्रदेश में उसकी तूती बोलती थी, लेकिन वामपंथी दलों से पराजय और तृणमूल कांग्रेस के उदय के बाद कांग्रेस पश्चिम बंगाल में एक तरह से अप्रासंगिक होती चली गई और नतीजा यह हुआ कि संगठन पूरी तरह बिखर गया। अधीर रंजन चौधरी कांग्रेस में निस्संदेह तेज तर्रार नेता हैं, लेकिन उनके बारे में राजनीतिक हलकों और कांग्रेसी खेमे यही कहा जाता है कि वह सिर्फ अपने बारे में ही सोचते थे। वह पश्चिम बंगाल के कांग्रेस संगठन का कामकाज दिल्ली से ही देखते थे। इंडिया ब्लाक की सदस्य होने के बावजूद तृणमूल कांग्रेस की सबसे ज्यादा प्रखर आलोचना अधीर रंजन चौधरी ही करते थे। भाजपा भी उस स्तर तक नहीं पहुंच पाती थी। लोकसभा चुनाव के दौरान भी टीएमसी और कांग्रेस में समझौता सिर्फ अधीर रंजन चौधरी की वजह से ही नहीं हो पाया था। बुरे हालात में भी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के पास सात प्रतिशत वोट बैंक है। यदि कांग्रेस और टीएमसी में समझौता हुआ होता, तो इसका फायदा दोनों दलों को होता और भाजपा की हालत थोड़ी और खराब होती। लेकिन अधीर रंजन चौधरी की जिद की वजह से बंगाल में टीएमसी से समझौता नहीं हो पाया, जबकि केंद्रीय नेतृत्व टीएमसी से समझौता चाहता था। अब जब शुभकंर सरकार को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई है, तब से उन्होंने टीएमसी के प्रति नरम रवैया अपनाना शुरू कर दिया है। पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए गए शुभंकर सरकार की सबसे पहली प्राथमिकता कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एकजुट करना और उनमें आत्मविश्वास पैदा करना है। नाराज कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़कर नए सिरे प्रदेश में संगठन को खड़ा करना उनकी सबसे बड़ी चुनौती है। असल में कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व किसी भी हालत में बंगाल में भाजपा को मजबूत होते हुए नहीं देखना चाहता है। इसके लिए वह वामपंथी दलों के साथ-साथ टीएमसी से समझौता कर सकता है। इसी बीच सांगठनिक तौर पर अपना विस्तार भी करना चाहता है ताकि बंगाल की राजनीति में उसका दखल पहले की तरह हो सके। यही वजह है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सरकार ने कार्यकर्ताओं से मिलना, उनकी राय जानना शुरू कर दिया है। अधीर रंजन चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष काल में कार्यकर्ताओं से मिलने और उनकी राय या सुझाव पर काम करने की जरूरत नहीं समझी जाती थी। कांग्रेस हाईकमान इस हालात को बदलना चाहता है। अपनी इस योजना में कांग्रेस हाईकमान और बंगाल प्रदेश अध्यक्ष शुभंकर सरकार कितना सफल हो पाते हैं, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन राजनीतिक हलकों में चल रही चर्चा के मुताबिक कांग्रेस कार्यकर्ता अधीर रंजन चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने से संतोष की सांस ले रहे हैं।

संजय मग्गू

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